Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 21
________________ ( २० ) दुम लंडाशारंगाचारिणातुव्यासताथ विरहिणी, मेंवशडीघोछे अमरिंगाशुल वीरवयननी यातुरी, ओश्यावेश्या उहे ताम परंगा धारमोना ढांस खग्याश्मी ॥ रानडुसें रही श ळ्या पातलीयालाखेहेशी ।। न्नेर्घ नेर्धरे। नेणतुणी घ्शा ।। खसबेलाक ॥ तमो नारी नी निंद्ये वस्या ।। ञसमेलाला भनगभतां लूषण सावता ॥ञणासुंर शएगार घ रावता॥जणाशाङरासिने जेसारता खगाउश्वा वस्सल वारता॥जगावर ज्व सउरी घृत लेलीया॥ञणामें तुमभुजमांहे भेसिया । जगाशा बसी तुभये हाथे हुन भी।जणा तुम ठीत्संगें रंगें रमी ॥खनाह वे बीपराठां तुमें डेमथया॥जगाते हिवस तुमारा जिहां गया। जनाआहोषा र हयि For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jaine brary.org

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