Book Title: Thulibhaddni Shilveli
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 20
________________ - - - (१८) रिपीगाऋषिरामा परंतरतोखेगाप्रीगाला पढाष दृशभीमादेवरियारमोरमपीर सभेतीनेएमेडेशीपरमपीशुंरंगरसेरमता, साघुर्नुसब्बभन्नयारंगीलीपरमो भारगो| मेलीनेएप्रेमापरहरवी भुनिवरने,मेमते उहे बिनरायारंगीलीपरभोभारगानि मगुएनयेउस्तूरीनो, ब्नेशिने हिंगनोवान सारंगा उपूरतगोशुएनिमलोघरीयें नेशणने पासारंगाशारभोग्यवरपंडित भूर्जनेसंगे, वायसोपामाइंसापरंगापापि टिमनायारी संगे, धर्मिष्ट पपुंकुखवंशपरंगा एरणामपछवायें रसोऽतयो,बजुसंग निमराजरंगागलीपासेंब्लस्वर्ण घटें,योरी संगुएलामाारंगाहातिममा निनीसंगेमुनिवरा,यूपिलरउहे सुगुनार परगाक्षणमात्रमहीपाशुंभारे, होयेति - । I Jain Eduationa International For Personal and Private Use Only www.jailibrary.org

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