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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती तेषां भवप्रत्ययोऽवधिर्जायत इति सम्बन्धः । देवनारकाणां भवमाश्रित्य क्षयोपशमो जायत इति कृत्वा भव एव प्रधानं कारणं व्रतनियमाद्यभावेऽपि सम्यग्दृष्टीनामवधेमिथ्यादृष्टीनां तु विभङ्गस्येति । भवस्य साधारणत्वेऽपि क्षयोपशमप्रकर्षाप्रकर्षवृत्तेरवधिविभङ्गयोरपि प्रकर्षाप्रकर्षवृत्तिरागमतो ज्ञेया । मनुष्यतिरश्चां किंनिमित्तः कतिप्रकारश्च सोऽवधिर्भवतीत्याह
क्षयोपशमनिमित्तः षड्विकल्पश्शेषाणाम् ॥ २२ ॥ अवधिज्ञानावरणस्य देशघातिस्पर्धकानामुदये सति सर्वघातिस्पर्धकानामुदयाभाव एव क्षयो विवक्षितस्तेषामेवानुदयप्राप्तानां सदवस्था उपशमस्तौ निमित्तं कारणं यस्य न भव इत्यसौ क्षयोपशम
इनके अवधि के उत्कृष्ट काल का प्रमाण असुरों के अवधि काल से संख्यातवें भाग मात्र है । भवनत्रिक देवों का नीचे का क्षेत्र कम है तिर्यग् रूप से अधिक है। सौधर्म ईशान स्वर्गस्थ देव प्रथम नरक तक अवधि द्वारा जानते हैं। सनत्कुमार माहेन्द्र स्वर्ग के देव दूसरे नरक तक ब्रह्म ब्रह्मोत्तर लांतव कापिष्ठ स्वर्ग के देव तीसरे नरक तक शुक्र महाशुक्र शतार सहस्रार स्वर्ग के देव चौथे नरक तक, आनत, प्राणत, आरण अच्यत स्वर्ग के देव पांचवें नरक तक, ग्रैवेयक वासी देव छ8 नरक तक, नव अनुदिश तथा पंच अनुत्तर वासी देव संपूर्ण लोकनाली को अवधि द्वारा जानते हैं। काल की अपेक्षा सौधर्म ईशान स्वर्ग के देव असंख्यात कोटी वर्ष की बात जानते हैं, सनत्कुमार माहेन्द्र, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर स्वर्ग के देवों की अवधि यथायोग्य पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण काल को जानती है, इसके आगे लांतव स्वर्ग से सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त के देव काल की अपेक्षा कुछ कम पल्य प्रमाण काल की बात जानते हैं। नरक में नारकी जीवों का अवधिज्ञान प्रथम नरक में एक योजन प्रमाण क्षेत्र को जानता है, दूसरे नरक में साढ़े तीन कोस, तीसरे में तीन कोस, चौथे में ढाई कोस पांचवें में दो कोस छ में डेढ़ कोस और सातवें में एक कोस प्रमाण क्षेत्र को अवधिज्ञान से जानता है । इसप्रकार देव और नारकी का अवधिज्ञान हीनाधिक रूप होता है ।
. मनुष्य और तिर्यञ्चों का अवधिज्ञान किस निमित्त से होता है, कितने प्रकार का है ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं
सूत्रार्थ-शेष मनुष्य और तिर्यञ्च के अवधिज्ञान क्षयोपशम के निमित्त से होता है और उसके छह भेद हैं । अवधि ज्ञानावरण कर्म के देशघाती स्पर्धकों के उदय में आने पर तथा सर्वघाती स्पर्धकों के वर्तमान निषेकों के उदय का अभाव होना रूप