Book Title: Tattvartha Vrutti
Author(s): Bhaskarnandi, Jinmati Mata
Publisher: Panchulal Jain

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Page 606
________________ 'दशमोऽध्यायः ।। [ ५६१ चारित्रेण केन सिध्यन्ति ? अव्यपदेशेनैकेन चतुःपञ्चविकल्पचारित्रेण वा सिद्धिः । प्रत्युत्पन्नावलेहिनयवशान्न चारित्रेण नाप्यचारित्रेण सिद्धिः किन्तु व्यपदेशविरहितेन भावेन सिद्धिः । भूतपूर्वगतिद्वैधा-अनन्तरव्यवहितभेदात् । आनन्तर्येण यथाख्यातचारित्रेण सिध्यति । व्यवधानेन तु चतुभिः पञ्चभिर्वा । चतुभिस्तावत्सामायिकच्छेदोपस्थापनासूक्ष्मसाम्पराययथाख्यातचारित्रैः। पञ्चभिस्तैरेव परिहारविशुद्धिचारित्राधिकैः। किमपि.मेघपटलादिकं माटकूटाद्याकारं क्षणदृष्टप्रणष्टमेकं प्रतीत्य परोपदेशमन्तरेण स्वशक्तव कामभोगादिभ्यो यो विरक्तबुद्धिर्जायते स प्रत्येकबुद्ध इत्याख्यायते। य. पुनः कामभोगाद्यासक्तचित्तः परेण बोधितः सन् कामभोगादिभ्यो विरतो भवति स बोधितबुद्ध इत्याख्यामास्कन्दति । प्रत्येकबुद्धसिद्धा बोधितबुद्धसिद्धाश्च वेदितव्याः । ज्ञानेनैकेन द्वित्रिचतुभिश्च ज्ञानविशेषैः सिद्धिः । प्रत्युत्पन्नग्राहिनयनिरूपणया केवलज्ञानेनैकेन सिद्धिर्भवति। भूतपूर्वगत्या द्वाभ्यां त्रिभिश्चतुभिश्च ज्ञानविशेषः सिद्धिर्भवति । द्वाभ्यां प्रकृष्ट किस चारित्र से सिद्ध होता है ? व्यपदेश रहित चारित्र से, एक चारित्र से, चार चारित्र से अथवा पांच चारित्र से सिद्धि होती है। इसी का आगे खुलासा करते हैंप्रत्युत्पन्न-वर्तमान को स्पर्श करने वाले नयकी अपेक्षा न चारित्र से सिद्धि होती है और न अचारित्र से सिद्धि होती है किन्तु नाम रहित भाव से सिद्धि होती है । भूतपूर्व गति दो प्रकार की है, अनन्तर और व्यवहित । अनन्तर की अपेक्षा यथाख्यात चारित्र से सिद्धि होती है। व्यवहित की अपेक्षा चार अथवा पांच चारित्रों से सिद्धि होती है। सामायिक, छेदोपस्थापना, सूक्ष्मसांपराय और यथाख्यात इन चारों चारित्रों से किसी मनुष्य की सिद्धि होती है और किसी मनुष्य की उन चार चारित्रों के साथ परिहार विशुद्धि चारित्र हो जाने से पांच चारित्रों से सिद्धि होती है। मेघपटल का माट कूट आदि का आकार लेकर क्षण भर के लिये दृष्टि गोचर होकर नष्ट हो जाना इत्यादि घटनाओं को देखकर परके उपदेश के बिना अपनी शक्ति से ही काम और भोगों से जो पुरुष विरक्त हो जाता है उसको प्रत्येक बुद्ध कहते हैं । और जो मनुष्य काम भोगों में आसक्त मन. वाला है दूसरे के द्वारा समझाने पर काम भोगादि से विरक्त होता है उसको बोद्धित बुद्ध कहते हैं । प्रत्येक बुद्ध होकर कोई सिद्ध होता है और कोई बोधित बुद्ध बनकर सिद्ध होता है ऐसा जानना चाहिए। - ज्ञानकी अपेक्षा-एक, दो, तीन अथवा चार ज्ञान विशेष से सिद्धि होती है । प्रत्युत्पन्ननय की अपेक्षा एक केवल ज्ञान द्वारा सिद्धि होती है । भूतपूर्व गति की अपेक्षा

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