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दशमोऽध्यायः
[ ५५९ . क्षेत्रादिभिर्द्वादशभिरनुयोगैः सिद्धाः साध्या विकल्प्या इत्यर्थः प्रत्युत्पन्नभूतानुग्रहतन्त्रनयद्वयविवक्षावशात् । तद्यथा-क्षेत्रेण तावत्कस्मिन् क्षेत्रे सिध्यन्ति ? प्रत्युत्पन्नग्राहिनयापेक्षया सिद्धिक्षेत्रे स्वप्रदेशे आकाशप्रदेशे वा सिद्धिर्भवति । भूतग्राहिनयापेक्षया जन्म प्रति पञ्चदशसु कर्मभूमिषु । संहरण प्रति मानुषक्षेत्रे सिद्धिः । ऋजुसूत्रशब्दभेदाश्च त्रयः प्रत्युत्पन्नविषयग्राहिणः । शेषा नया उभयभावविषयाः।
कालेन-कस्मिन्काले सिद्धि: ? प्रत्युत्पन्ननयापेक्षया एकसमये सिध्यन् सिद्धो भवति । भूतप्रज्ञापननयापेक्षया जन्मतोऽविशेषेणोत्सपिण्यवसपिण्योतिः सिध्यति । विशेषेणावसपिण्यां सुषमदुःषमाया अन्त्ये भागे दुःषमसुषमायां च जातः सिध्यति । दुःषमसुषमायां जातः दुःषमायां सिध्यति । न तु
सूत्रार्थ- क्षेत्र, काल, गति, लिंग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येकबुद्ध, बोधितबुद्ध, ज्ञान, अवगाहना, अन्तर, संख्या और अल्प बहुत्व इन बारह (तेरह) अनुयोगों द्वारा सिद्धों में भेद व्यवहार साध्य होता है ।
क्षेत्रादि बारह (तेरह) अनुयोगों से सिद्ध जीव विकल्पनीय हैं । प्रत्युत्पन्न नय और भूत अनुग्रहतन्त्र नय इन दो नयों की अपेक्षा क्षेत्रादि अनुयोग सिद्धों में घटित करने चाहिए । आगे इन्हीं को बतलाते हैं । क्षेत्र की अपेक्षा-किस क्षेत्र से सिद्ध होते हैं ऐसा प्रश्न होने पर प्रत्युत्पन्न नय की अपेक्षा सिद्धि क्षेत्र में, स्वप्रदेश में अथवा आकाश प्रदेश में सिद्धि होती है । भूतग्राही नय की अपेक्षा जन्म के प्रति पन्द्रह कर्मभूमियों में सिद्धि होती है और संहरण के प्रति मानुष क्षेत्र में सिद्धि होती है। ऋजुसूत्र नय, शब्द नय और भेद नय (व्यवहारनय) ये तीन नय प्रत्युत्पन्न वर्तमान विषय के ग्राहक हैं । शेषनय उभय भाव विषय वाले हैं अर्थात् वर्तमान के साथ भूत और भावी विषय के भी ग्राहक हैं।
कालकी अपेक्षा किस काल में सिद्धि होती है ? वर्तमान नयकी अपेक्षा एक समय में सिद्ध होता हुआ सिद्ध होता है । भूत प्रज्ञापन नयकी अपेक्षा जन्म की अपेक्षा सामान्यतः उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल में जन्मे हुए सिद्ध होते हैं । विशेष की अपेक्षा अवसर्पिणी के सुषमा दुषमा के अन्त भाग में जन्मा हुआ और दुषम सुषमा में जन्मा हुआ सिद्ध होता है। दुषम सुषमा में उत्पन्न हुआ मनुष्य दुषमकाल में सिद्ध होता है किन्तु दुषमा में उत्पन्न हुआ दुषमा में सिद्ध नहीं होता। अन्य काल में तो सिद्ध