Book Title: Tattvartha Vrutti
Author(s): Bhaskarnandi, Jinmati Mata
Publisher: Panchulal Jain

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Page 625
________________ शुद्धि पत्र पंक्ति सङक्रान्ते । २ अशुद्ध सङ कान्ते दूसरे सूत्र का अर्थ छूट गया है। सड्डे सह क्षायिक उपभोग तथा क्षायिक उपभोग, क्षायिक वीर्य तथा एक एक प्रस्तार में प्रस्तारों में पाठ छूटा है वह इस प्रकार है ब्रह्म आदि पाठ समूह देवों के होते हैं इत्याधिः परकाची की मान्यता तथा अन्य कोई प्रकार की मान्यता है उसका निरसन इस सूत्र से हो जाता है। संवादि संयतादि विशति रेकान्नेति चेत् विशति रेकान्नेति वेदनायोगे । वेदानुयोगे प्रत्यनकान्त प्रत्यनेकान्त पुद्गलावीर्य विशेषः पुद्गलाः वीर्य विशेष कनक द्वारा कतक फल द्वारा साहस्योपचाराः सादृशस्योपचारा सद्रूप होने से रूप लिंग . सदरूपलिंग . चर्माततनात् । चर्मातननात् उत्पन्न होने से अर्थ में उत्पन्न होने अर्थ में पूर्व कोटि भाग .. पूर्व कटी भाग तत् परिणामकापादित तत् परिणामापादित कर्म के क्षयोपशम की कर्म के क्षय और क्षयोपशम की कीदृगय-भागमन हेतु कीदृग् योग प्रागमन हेतु ५२४ ५६४ २८१ २९४ xx xxw . . २९७ २९९ २९९ ३०९ ३१५ ३२४ ३२९ ३४५

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