________________
३३६ ]
सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ता
मन्दादिभावेन भिद्यमाना गुग्गा विकारा, द्व्यणुकादयश्च द्रव्यविकारा विशेषरूपा वेदितव्याः । एवं धर्मादीनामपि गुणा: पर्यायाश्चागमानुसारेण योज्याः । अत्राहोक्तः । परिणामशब्दोऽसकृन्न तु तस्यार्थो
जाती है । द्रव्यपर्याय और ग ुणपर्याय ऐसे भी पर्याय के दो भेद हैं । गुण में जो परिवर्तन होता है वह गणपर्याय है, द्रव्य में जो परिणमन है वह द्रव्य पर्याय है । समान जातीय द्रव्यपर्याय और असमान जातीय द्रव्यपर्याय ऐसे भी पर्याय के दो भेद होते हैं । जीव और कर्म नोकर्मरूप पुद्गल की मिली हुई पर्याय असमान जातीय द्रव्य पर्याय है, जैसे संसारी जीव में कर्म नोकर्म की एक सम्बन्धरूप अवस्था है । दो अणुओं का या अनेक अणुओं का अथवा अनेक स्कन्धों का परस्पर में बन्धरूप मिलना समान जातीय द्रव्यपर्याय है । समान जातीय द्रव्य पर्याय मात्र एक पुद्गल द्रव्य में ही है । असमानजातीय द्रव्यपर्याय जीव और पुद्गल की मिली अवस्था है । जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य ये दोनों विकारी भी होते हैं । संसारी जीव और स्कन्ध अवस्था को प्राप्त पुद्गल विकारी या अशुद्ध द्रव्य कहलाते हैं । परमाणु शुद्ध पुद्गल द्रव्य है । मुक्त जीव • सिद्ध भगवान शुद्ध जीव द्रव्य है । जीव और पुद्गल ये अशुद्ध होने से इनकी गण तथा पर्यायें भी अशुद्ध होती हैं । अतः इन दो द्रव्यों की अर्थ पर्यायें तथा व्यंजन पर्यायें दो जातीय हैं - स्वभाव अर्थ पर्याय, विभाव अर्थ पर्याय । स्वभाव व्यंजन पर्याय और विभाव व्यंजन पर्याय । मुक्त जीव में प्रतिक्षण अग ुरुलघु गुणके निमित्त से गुणों में जोडणी हानि वृद्धि होती रहती है वे स्वभाव अर्थ पर्यायें हैं । संसारी जीव में, कषाय, लेश्या तथा मतिज्ञान इत्यादि में प्रतिक्षण जो षड् गुणी वृद्धि हानिरूप तरतमता या परिणमन होते हैं वे विभाव अर्थ पर्यायें हैं । सिद्ध जीवका - चरम शरीर से किंचित कम आकार में स्थित रहना स्वभावव्यंजन पर्याय है । संसारी जीवों की चार गति आदि रूप जो पर्यायें हैं वे सब विभाव व्यंजन पर्यायें हैं । पुद्गल में जो परमाणु है उसमें प्रतिक्षण वर्णादि गुणों में परिवर्तन होता है वह स्वभाव गुणपर्याय है और जो अग ुरुलघु ग ुण निमित्तक षड् हानि वृद्धिरूप है वह स्वभाव अर्थ पर्याय है । स्कन्ध में जो ग ुण है उनमें जो परिवर्तन होता है, वह विभाव गुणपर्याय है तथा अगरु लघु निमित्तक समयवर्ती विभाव अर्थ पर्याय है । परमाणु स्वभाव व्यंजनपर्याय है । स्कन्ध विभाव व्यञ्जन पर्याय है । शब्द, बन्ध, सौक्ष्म्य, स्थौल्य इत्यादि पुद्गल द्रव्य की विभाव व्यञ्जन पर्यायें अनेक प्रकार की हैं । इस प्रकार छह द्रव्यों का यह संक्षिप्त वर्णन है |