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सप्तमोऽध्याय।
[ ४२९ करणमनुष्ठानं कूटलेखक्रिया । अन्येनानुक्त यत्किञ्चित्परप्रयोगवशादेवं तेनोक्तमनुष्ठितमिति वञ्चनानिमित्त पत्रादौ लेखनमिति तात्पर्यार्थः। न्यस्यत इति न्यासो निक्षेपस्तस्यापहरणं न्यासापहारः । कोऽर्थः ? हिरण्यादिद्रव्यस्य निक्षेप्तुविस्मृतसंखयानस्याल्पसंखयानमादधानस्यैवमित्यनुज्ञावचनमित्ययमर्थः । मन्त्रस्य भेदनं मन्त्रभेदः । सहाऽऽकारेण वर्तते साकारः । साकारश्चासौ मन्त्रभेदश्च साकारमन्त्रभेदः । अस्यापि कोऽर्थः ? अर्थप्रकरणाङ्गविकारभ्रू विक्षेपादिभिः पराभिप्रायमुपलभ्य तदाविष्करणमसूयादिनिमित्तमित्ययमर्थः । त एते सत्याणुव्रतस्य पञ्चातिकमा वेदितव्याः । अचौर्याणुव्रतस्याऽतिचारानाहस्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मान
प्रतिरूपकव्यवहाराः ॥ २७ ॥
कर्मधारय समास करना । कूट लेख क्रिया-झूठे लेख लिखना अर्थात् अन्य ने कुछ कहा नहीं है फिर उसके ईशारे आदि किसी प्रयोग से अभिप्राय से कुछ भी समझकर उसने ऐसा कहा है या किया है इत्यादिरूप से ठगने हेतु पत्र आदि में लिख देना कट लेख क्रिया कहलाती है । रखने को न्यास कहते हैं, अर्थात् निक्षेप-रखी वस्तु को न्यास कहते हैं, उसका अपहरण करना, अर्थात् सुवर्ण आदि द्रव्यको रखकर कोई उसकी संख्या को भूल गया है वह पुरुष अल्प संख्या को स्मरण कर उतना ही वापस लेता है तो उसको उतना ही देना, शेष को जान बूझकर लोभवश नहीं देना न्यासापहार है अभिप्राय यह है कि किसी ने किसी व्यक्ति के पास कुछ धनादि को धरोहर रूप से रखा या कोई चीज रखकर कर्जा लिया समय पर वह भूल गया कि कितना द्रव्य रखा था उससे थोड़ा ही द्रव्य मांगता है तो उसको उतना ही देना पूरा याद नहीं दिलाना न्यासापहार अतिचार है । मन्त्र का भेद मन्त्र भेद कहलाता है । आकार सहित को साकार कहते हैं । मन्त्र भेद और साकार पद में कर्मधारय समास है, इसका अर्थ है कि अर्थ प्रकरण से शरीर के विकार से, भ्रू के चलाने आदि से दूसरों के अभिप्राय को समझकर ईर्षा वश उसको प्रगट करना साकार मन्त्र भेद नामका अतिचार है। ये सब मिलकर सत्याणुव्रत के पांच अतिचार होते हैं ।
अचौर्याणुव्रत के अतिचार बतलाते हैं
सूत्रार्थ-स्तेन प्रयोग, स्तेनप्रयोग से लाया हुआ धन ग्रहण करना, राज्य के विरुद्ध अतिक्रम करना, कम अधिक माप तौल करना और प्रतिरूपक व्यवहार ये पांच