Book Title: Tattvartha Vrutti
Author(s): Bhaskarnandi, Jinmati Mata
Publisher: Panchulal Jain

View full book text
Previous | Next

Page 598
________________ अथ दशमोऽध्यायः संवरानन्तरं निर्जरामोक्षो वक्तव्यौ । तयोश्च परमकारणं केवलज्ञानमिति तदुत्पत्तिहेतुनिर्दिशन्नाह - मोहक्षयाज्ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम् ॥ १ ॥ वृत्त्यकरणं क्रमेण क्षयज्ञापनार्थम् । मोहक्षयानन्तरं ज्ञानावरणादिक्षयात्केवलमा विर्भवतीति निश्चयः । केवलहेतुश्च तत्क्षयः प्रणिधानविशेषात्सम्भाव्यते । कुतः कीदृशश्च मोक्ष इत्याह संवर के अनन्तर निर्जरा और मोक्ष कहने योग्य है । उन दोनों के परम कारण केवलज्ञान है, इसलिये उस केवलज्ञान की उत्पत्ति क हेतुओं का निर्देश करते हुए सूत्रावतार होता है सूत्रार्थ - मोहकर्म के क्षय होने से तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म के क्षय से केवलज्ञान उत्पन्न होता है । यहां पर सूत्र में 'मोहक्षयात्' इत्यादि पद पृथक् पृथक् रखे हैं उनका समास नहीं किया है वह क्षय का क्रम बतलाने हेतु नहीं किया है । मोहकर्म के क्षय हो जाने के अनन्तर ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म का क्षय होता है और उससे केवल ज्ञान प्रगट होता है । ऐसा नियम समझना चाहिए । केवलज्ञान का हेतु जो उन कर्मों का क्षय है वह प्रणिधान विशेष से- आत्म परिणाम विशेष से ( ध्यान से ) होता है । प्रश्न- मोक्ष किस हेतु से होता है एवं वह किस प्रकार का है, कैसा है ? उत्तर- इसी को सूत्र द्वारा कहते हैं

Loading...

Page Navigation
1 ... 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628