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नवमोऽध्यायः
[ ५३३ निरोधः । स ध्यानमिति ध्येयध्यानस्वरूपनियमः । तथा चानेकत्वाभिधाने प्रधाने वाऽविद्योपकल्पिते वस्तुनि ध्याननिवृत्तिः, स्थैर्यानुत्पत्तेरतिप्रसङ्गाच्च । आत्मनैव ध्यानमात्मन्येव चेत्यप्यपास्तं चिन्तायाः स्वार्थविषयतोपपत्तेः । सकलचिन्ताऽभावमात्रं चिन्तामात्र वा ध्यानमिति च दूरीकृतम् । सर्वथाऽप्यभावस्य प्रमाणपुरुषस्वरूपस्य च सकलचिन्ताशून्यस्य ध्यानत्वे मुक्तावपि तत्प्रसङ्गात् । यतोऽसंप्रज्ञातो योमो निःश्रेयसहेतुर्येन तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानं वर्ण्यते तदेव निःश्रेयसं तदेव तयानमिति चेद्व्याहत
निरोध होना, निश्चलता होना, अर्थात् अन्य अन्य चिन्ता का न होना एकाग्र चिन्ता निरोध कहलाता है। वह ध्यान है, इस वाक्य से ध्यान और ध्येय का स्वरूप कहा है। यदि 'अनेक चिन्ता निरोधो' ऐसे पदका प्रयोग करते अथवा 'अनेकाग्र चिन्तानिरोधो' ऐसा प्रयोग करते तो ध्यान की निवृत्ति होती-ध्यान का लक्षण ही समाप्त होता, क्योंकि अनेक में मनका जाना तो स्थिरता रूप नहीं रहा, उसको ध्यान कैसे कह सकते हैं ? नहीं कह सकते । तथा अनेक वस्तु ध्येयरूप है तो उसमें अविद्या से कल्पित प्रधान में (संख्याभिमत प्रधान तत्त्व में) तथा कल्पित की. गयी वस्तु में ध्येयपना आ जाने से अति प्रसंग दोष आता है-हर किसी वस्तु के ध्यान से मुक्ति मानने का प्रसंग आता है, इसलिये 'एकाग्र चिन्ता निरोधो' ऐसा वाक्य ही श्रेयस्कर है।
___ आत्मा द्वारा ही ध्यान होता है अथवा आत्मा में ही ध्यान होता है ऐसा आत्मा और ध्यानको एकरूप मानने का किसी का आग्रह है तो उसका खण्डन उपर्युक्त ध्यान के लक्षण से हो जाता है क्योंकि चिन्ता के निरोध का अर्थ अभाव नहीं है किन्तु उसका अपना विषय तो है ही, अपने विषय में मनका रुकना ध्यान है । सकल चिन्ता का अभाव होना ध्यान है अथवा चिन्ता मात्रको ध्यान कहते हैं इत्यादि मान्यता भी उपर्युक्त ध्यान के लक्षण से खण्डित हो जाती है ।
दूसरी बात यह है कि सर्वथा अभावस्वरूप वस्तु को मानते हैं या सकल चिन्ता से शून्य प्रमाण पुरुष के ध्यान होना स्वीकार करते हैं तो मुक्ति होने पर भी ध्यान मानना पड़ेगा।
शंका-जिस कारण से असंप्रज्ञात योग को मोक्ष का हेतु माना है जिससे उस वक्त द्रष्टा आत्मा का स्वस्वरूप में अवस्थान होना मोक्ष माना है इसलिए अर्थात असंप्रज्ञात योग ध्यान है और वही स्वरूप में स्थितिरूप मोक्ष है ऐसा हम सांख्यादि ने माना है, वही निःश्रेयस-मोक्ष है और वही ध्यान है ऐसा हमारा कहना है ?