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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ सचित्तो व्याख्यातस्तस्मिन्सचित्ते पद्मपत्रादौ निक्षेपणमतिथिदेयाहारनिधानं निक्षेपः । अपिधानमावरणम् । तत्प्रकरणवशात्सचित्तेनैव सम्बध्यते-सचित्तापिधानमिति । परेण दात्रा व्यपदेशः परब्यपदेशः। अन्यत्र दातारः सन्तीति वा दीयमानोऽप्ययमन्यस्येति वा अर्पणमिति तात्पर्यार्थः । प्रयच्छतोप्यादरमन्तरेण दानं मात्सर्यमिति कथ्यते । कालस्य भोजनदानार्हस्यातिक्रमणं कालातिक्रमः । अनगाराणामयोग्ये काले भोजनमित्यर्थः । सचित्तनिक्षेपादीनामितरेतरयोगे द्वन्द्ववृत्तिः । त एते पञ्चाऽतिथिसंविभागशीलस्य दोषा भवन्ति । प्राह सप्तानामपि शीलानामतिचारा उक्ताः । इदानीं सल्लेखनायास्ते वक्तव्या इत्यत आह
जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदानानि ॥३७॥ जीवितं च मरणं च जीवितमरणम् । तस्याशंसा अभिलाषो जीवितमरणाशंसा। अवश्य हेयत्वे शरीरावस्थानाऽऽदरो जीविताशंसा। शरीरमिदमवश्यं हेयं, जलबुबुदवदनित्यं, अस्यावस्थानं कथं
... सचित्त शब्दका अर्थ कह चुके हैं। उस सचित्त पद्म पत्र आदि में अतिथि को देने योग्य पदार्थ को रखना सचित्त निक्षेप कहलाता है। अपिधान आवरण को कहते हैं । प्रकरणवश उसका सचित्त के साथ ही सम्बन्ध होता है उसे सचित्तापिधान कहते हैं। परदाता से दान दिलाना पर व्यपदेश है। अन्यत्र दातार हैं ऐसा कहना अथवा देय पदार्थ को अन्य को देना कि तुम देवो, इस तरह पर के द्वारा दान दिलाना परव्यपदेश कहलाता है। दानको देते हुए आदर भाव नहीं रखना मात्सर्य है। भोजन वेला का अतिक्रम करना कालातिक्रम है । अर्थात् साधुओं को अयोग्य काल में आहार देना कालातिक्रम कहलाता है। सचित्त निक्षेप आदि पदों में इतरेतर द्वन्द्व समास है। ये पांच अतिथि संविभाग शीलके अतिचार हैं।
प्रश्न-सात शीलों के अतिचार तो कह दिये । अब सल्लेखना के अतिचार कहने चाहिये ?
उत्तर-अब इसी को कहते हैं
सूत्रार्थ-जीने की इच्छा, मरने की इच्छा, मित्रानुराग, सुखानुबन्ध और निदान ये पांच सल्लेखना के अतिचार होते हैं ।
जीवित और मरण की आशंसा-अभिलाषा करना जीविताशंसा और भरणाशंसा कहलाती है। जो अवश्य नष्ट होने वाला है ऐसे शरीर की स्थिति की वांछा करना जीविताशंसा है। यह अवश्य त्याज्य है, जल के बुलबुले के समान अनित्य है, ऐसे