________________
सप्तमोऽध्यायः
[ ३९५ मनोज्ञाऽमनोजेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पञ्च ।।८।। मनोज्ञा इष्टाः । अमनोज्ञा अनिष्टाः । इन्द्रियाणि स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि पंचोक्तानि । विषयाः स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तद्ग्राह्या अर्थाः। तेऽपि पंचोक्ताः। रागः प्रीतिः । द्वेषोऽप्रीतिः । रागश्च द्वेषश्च रागद्वेषौ । इंद्रियाणां विषया इन्द्रियविषयाः । मनोज्ञाश्चाऽमनोज्ञाश्च मनोज्ञाऽमनोज्ञाः । ते च ते इन्द्रियविषयाश्च मनोज्ञाऽमनोजेन्द्रियविषयाः । तेषु रागद्वेषौ मनोज्ञाऽमनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेषौ। तयोर्वर्जनानि मनोज्ञाऽमनोजेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि । अयमर्थः- मनोज्ञेऽमनोज्ञे च स्पर्शनस्यार्थे स्पर्श रागद्वेषयोर्वर्जनं, रसनस्य च रसे रागद्वेषवर्जनं, घ्राणस्य च गन्धे रागद्वेषवर्जनं, चक्षषश्च वर्णे रागद्वेषवर्जनं, श्रोत्रस्य च शब्दे स्वविषये रागद्वेषवर्जनम् । तानीमानि पञ्चाऽऽकिञ्चन्यव्रतस्य भावना भवन्तीति सर्वाश्चैताः समुदिताः पञ्चविंशतिः प्रत्येतव्याः । तथा व्रतद्रढिमार्थं तद्विपक्षेष्वपि भावनास्वरूपमाह
सूत्रार्थ-पञ्चेन्द्रियों के मनोज्ञ विषयों में राग और उन्हीं के अमनोज्ञ विषयों में द्वेष नही करना ये परिग्रह त्याग व्रतकी पांच भावना हैं ।
इष्टको मनोज्ञ कहते हैं, और अनिष्ट को अमनोज्ञ कहते हैं। स्पर्शन रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण ये पांच इंद्रियां पहले कही थी। विषय भी पांच हैं स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द इनका कथन पहले हो चुका है। रागद्वेष पदमें द्वन्द्व समास है तथा मनोज्ञ अमनोज्ञ में भी द्वन्द्व समास है। मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्वरूप स्पर्शादि विषयों में राग द्वेष का त्याग करना परिग्रह त्याग व्रतकी पांच भावनायें हैं। इसका स्पष्टीकरण करते हैं-स्पर्शनेन्द्रिय के मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्श विषय में क्रमशः राग और द्वेष नहीं करना । रसनेन्द्रिय के मनोज्ञ अमनोज्ञ रस विषय में राग द्वेष नहीं करना, घ्राणेन्द्रिय के मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्ध विषय में राग द्वेष नहीं करना, चक्षुरिन्द्रिय के मनोज्ञ अमनोज्ञ रूप विषय में राग द्वेष नहीं करना और कर्णेन्द्रिय के मनोज्ञ अमनोज्ञ शब्द विषय में राग द्वेष नहीं करना ये सब मिलकर पांच भावनायें पांचवें परिग्रह त्याग व्रतकी जाननी चाहिए । पांचों व्रतोंकी कुल भावनायें पच्चीस होती हैं।
तथा वृत दृढ़ता के लिये व्रतों के विपक्षी जो हिंसादि हैं उनके विषय में जो भावना की जाती है उसको बताते हैं