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चतुर्थोऽध्यायः पमाणि । सा पङ्कप्रभायां जघन्या । तस्यां परा स्थितिरुक्ता दशसागरोपमाणि । सा धूमप्रभायां जघन्या । धूमप्रभायां परा स्थितिरुक्ता सप्तदशसागरोपमाणि । सा तमःप्रभायां जघन्यां । तमःप्रभायां परा स्थितिरुक्ता द्वाविंशतिसागरोपमाणि । सा महातमः प्रभायां जघन्येति । अथ प्रथमायां पृथिव्यां का जघन्या स्थितिरित्याह
दशवर्षसहस्राणि प्रथमायाम् ॥ ३६॥ अपरा स्थितिरित्यनुवर्तते । तेन रत्नप्रभायां जघन्या स्थितिर्दशसंवत्सरसहस्राणीति प्रत्येयम् । तहि भवनवासिनां का जघन्या स्थितिरित्याह
भवनेषु च ॥ ३७॥ चशब्दः प्रकृतसमुच्चयार्थः । तेन भवनेषु च ये वसन्ति प्रथमनिकायदेवास्तेषां दशवर्षसहस्राणि जघन्या स्थितिरित्यभिसम्बध्यते । व्यन्तराणां जघन्यस्थिति प्रतिपादयन्नाह
व्यन्तराणां च ॥३८॥
स्थिति है, उस पंकप्रभा में उत्कृष्ट आयु दस सागर की है, वही धूमप्रभा · में जघन्य आयु है। धूमप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति सतरह सागर की है वही तमःप्रभा में जघन्य आयु है। तमः प्रभा में उत्कृष्ट आयु बावीस सागर की है वही महातमः प्रभा में जघन्य आयु है ।
अब प्रथम पृथिवी में जघन्य स्थिति कौनसी है यह सूत्र द्वारा बतलाते हैंसूत्रार्थ-प्रथम नरक में दस हजार वर्ष की जघन्य आयु होती है ।
जघन्य स्थिति का प्रकरण चल रहा है, रत्नप्रभा नरक में जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की जाननी चाहिये ।
भवनवासियों की जघन्य स्थिति कौनसी है सो बताते हैंसूत्रार्थ-भवनवासियों को भी जघन्य आयु दस हजार वर्ष प्रमाण है ।
च शब्द प्रकृत समुच्चय के लिये है । भवनों में रहने वाले प्रथम निकाय के जो देव हैं उनकी जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है ऐसा संबंध करना ।
सत्रार्थ-व्यन्तरों की जघन्य स्थिति भी दस हजार वर्ष की है।