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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती रूक्षः स्निग्धानां रूक्षश्च गुणकारसाम्ये सति बन्धस्य प्रतिषेधवद्गुणवैषम्यविधिश्च सिद्धो भवति । अतो जघन्यवर्जानां · गुणवैषम्यतुल्यजातीयानामतुल्यजातीयानां चाविशेषाबन्धस्य प्रसंगे इष्टार्थसंप्रत्ययार्थमाह -
द्वयधिकादिगुणानां तु ॥ ३६॥ ___ द्वाभ्यां गुणाभ्यामधिको द्वयधिकः । कः पुनरसौ चतुर्गुणः ? आदिशब्दोऽत्र प्रकारवाची। प्रकारश्च द्वाभ्यामधिकता। तेन पञ्चगुणादीनां संप्रत्ययो भवति । अत्रावयवेन विग्रहः समुदायस्तु समासार्थस्तेन चतुर्गुणस्यापि ग्रहणं भवति । द्वयधिक आदिर्येषां पञ्चगुणादीनामणूनां ते द्वयधिकादयस्तेषामेव गुणो गुणकारो येषां ते द्वयधिकादिगुणास्तेषां द्वयधिकादिगुणानाम् । तुशब्दोऽत्र प्रतिषेधं निवर्तयति, बन्धं च विशेषयति । तेन द्वयधिकादिगुणानां तुल्यजातीयानामतुल्यजातीयानां च बध उक्तो भवति नेतरेषाम् । तद्यथा-द्विगुणस्निग्धस्य परमाणोरेकगुणस्निग्धेन द्विगुणस्निग्धेन त्रिगुणस्निग्धेन वा नास्ति सम्बन्धः । चतुर्गुणस्निग्धेन पुनरस्ति सम्बन्धः । तस्यैव पुनर्द्विगुणस्निग्धस्य पञ्चगुणस्निग्धेन गुणकार समान होने पर जैसे बंधका निषेध होता है वैसे ही गुणों की विषमता होने पर बन्धकी विधि भी सिद्ध हो जाती है ।
गुणों की विषमता होने पर तुल्य जातीय हो चाहे अतुल्य जातीय हो दोनों का अविशेषपने से बंध होने का प्रसंग प्राप्त था अतः इष्ट अर्थ बतलाने हेतु अग्रिम सूत्र कहते हैं
सूत्रार्थ- दो अधिक गुणवालों का तो बन्ध होता है।
दो गणों से अधिक द्वयधिक कहलाता है। वह कौन है ? चार गुणा है । आदि शब्द प्रकारवाची है प्रकार यह कि दो से अधिक होना। उससे पांच आदि गुणों की प्रतीति हो जाती है। 'अवयवेन विग्रहः समुदायः समासार्थः' इस व्याकरण के नियमानुसार चार गुणों का भी ग्रहण होता है। दो अधिक है आदि में जिनके ऐसे पांच आदिक गुणवाले जो परमाणु हैं वे द्वयधिकादि कहलाते हैं, उन्हीं का गुण अर्थात् गणकार जिनके है वे द्वयधिकादिगुणा कहलाते हैं उनके । यहां सूत्र में 'तु' शब्द प्रतिषेध को हटाता है और बन्धका विशेष बतलाता है। उससे यह अर्थ ध्वनित होता है कि तुल्य जातोय होवे चाहे अतुल्यजातीय यदि दो गुण अधिक हैं तो उन परमाणुओं का बन्ध होता है, अन्योंका नहीं । इसी का खुलासा करते हैं-दो गुण स्निग्ध वाले परमाणका एक गुण स्निग्ध के साथ, दो गुण स्निग्ध के साथ या तीन गुण स्निग्ध के साथ बंध नहीं होता है। किन्तु यदि चार गुण स्निग्ध हैं तो उनके साथ बन्ध होता। उसी दो गुण