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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती णान्तरसाध्या कार्यत्वात्तण्डुलपाकवत् । यच्च निमित्तकारणं स मुख्यः काल इति निश्चीयते । समयादीनां क्रियाविशेषाणां समयादिनिर्वानां च पर्यायाणां पाकादीनां च स्वात्मसद्भावानुभवनेन स्वतः एव वर्तमानानां निवृत्तेर्बहिरङ्गो हेतुः समय: पाक इत्येवमादिस्वसंज्ञारूढिसद्भावेऽपि काल इत्ययं व्यवहारोऽकस्मान्न भवतीति तद्वयवहारहेतुनान्येन भवितव्यमिति कालोऽनुमेयः । सूर्यादिगतिः सूक्ष्मा वर्तनाहेतुरिति चेन्न-तस्या अप्येकसमयवृत्तिहेतुत्वस्य कालमन्तरेणानुपपत्तेः । नाप्याकाशप्रदेशा वर्तनाहेतवस्तेषामाधारत्वेन व्यवस्थापितत्वात् । नापि धर्माधौं तद्ध तू तयोर्गतिस्थितिहेतुत्वेनोक्त
सकल पदार्थों में पायी जाने वाली वर्त्तना कारणान्तर से साध्य है, क्योंकि कार्यरूप है, जैसे चावलों का पकना कारणान्तर साध्य होता है । वह जो कारणान्तर है वह मुख्य काल है । इसतरह काल का निश्चय होता है । समय आदि क्रिया विशेषों का तथा समय से निष्पन्न पाकादि पर्यायें जो कि स्वसत्ता का अनुभवन करके स्वतः ही वर्तमान हैं उनकी उत्पत्ति का बाह्य कारण काल है । उनमें पाक आदि स्वसंज्ञा रूढ़ि से सद्भाव होने पर भी काल यह व्यवहार अकस्मात् [ निर्हेतुक ] नहीं होता। अतः उस काल के व्यवहार का हेतु कोई अन्य अवश्य होना चाहिये । उस काल के व्यवहार के कारण से काल अनुमेय होता है ।
___ शंका-सूक्ष्म रूप जो सूर्य आदि की गति है वह वर्तना का हेतु है [ न कि काल ] ।
___समाधान-यह कथन ठीक नहीं है । एक समय वृत्ति का हेतुरूप वह सूर्यादि की गति भी काल के बिना नहीं हो सकती । अर्थात् सूक्ष्म वतन चाहे किसी में हो वह काल के बिना संभव नहीं है । सूर्य की गति से हम समवादि का निश्चय भले ही करें किन्तु स्वयं सूर्य की गति में हेतु तो काल ही है।
आकाश के प्रदेश वर्तना के हेतु हैं ऐसा भी नहीं कह सकते, आकाश प्रदेश तो उन वर्तना वाले पदार्थों के आधार भूत हैं । अर्थात् आकाश आधार का हेतु है वर्तना का हेतु नहीं है । ____धर्म अधर्म द्रव्य भी वर्त्तना के हेतु नहीं हैं, वे दोनों तो गति और स्थिति के हेतु हैं।
शंका-पदार्थों की अपनी सत्ता ही वर्त्तना का हेतु है, जैसे कालाणु स्वयं स्वसत्ता के हेतु हैं ।