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चतुर्थोऽध्यायः
[ २२७ प्रानतप्राणतयोरर्धचतुर्थरत्निप्रमाणम् । प्रारणाच्युतयोर्हस्तत्रयप्रमाणम् । अधोग्रैवेयकत्रयेऽर्धतृतीयरनिप्रमाणम् । मध्यप्रैवेयकत्रये हस्तद्वयप्रमाणम् । उपरिमप्रैवेयकत्रयेऽनुदिशविमानेषु चाध्यर्धारनि मात्रम् । पञ्चानुत्तरेषु देवानां हस्तमात्रशरीरं । परिग्रहश्च विमानपरिवारादिपर्युपरि हीनः । अभिमानश्चोपर्युपरि मन्दककषायत्वाधीन इति व्याख्येयम् । किलेश्याः सौधर्मादिषु देवा इत्याह
पीतपयशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु ॥ २२ ॥ . पीता च पद्मा च शुक्ला च पीतपद्मशुक्लाः । पीतपद्मशुक्ला लेश्या येषां ते पीतपद्मशुक्ललेश्या देवाः । कथं पीतपद्मयोर्द्वन्द्वसमासे ह्रस्वत्वं समानाधिकरणस्योत्तरपदस्याभावादिति चेदुच्यतेधृतौच्चैरिति सिद्धेर्यद्धृतोच्चैस्त इति सूत्रे तपकरणं तज्ज्ञापयति–क्वचिद्वन्द्वेप्यौत्तरपदिकं ह्रस्वत्वं भवतीति । तेन यथा मध्यमा च विलम्बिता च मध्यमविलम्बिते इत्यादावौत्तरपदिकं ह्रस्वत्वं बहुलं
आनत प्राणत में साढ़े तीन हाथ, आरण अच्युत में तीन हाथ, अधो अवेयक त्रय में ढाई हाथ, मध्य के तीन ग्रैवेयक में दो हाथ उपरिम तीन प्रैवेयकों में डेढ़ हाथ तथा नौ अनुदिशों में डेढ़ हाथ और पंच अनुत्तर में एक हाथ प्रमाण शरीर होते हैं । विमान परिवार आदि परिग्रह भी ऊपर ऊपर कम कम हैं मन्द कषाय होने से ऊपर ऊपर अभिमान भी कम है, इसप्रकार व्याख्यान करना चाहिये ।
प्रश्न-सौधर्म आदि स्वर्गों में कौनसी लेश्या वाले देव होते हैं ? उत्तर-इसी को बतलाते हैं
सूत्रार्थ-दो युगल, तीन युगल और शेष युगलों में क्रमशः पीत लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या वाले देव होते हैं।
पीत आदि शब्दों में द्वन्द्व गभित बहुब्रीहि समास है ।
शंका-पीत और पद्म शब्द द्वन्द्व समास में ह्रस्व किस प्रकार हो सकते हैं, क्योंकि समानाधिकरण रूप उत्तर पद का यहां अभाव है ?
समाधान-"धृतोच्चैः" इस सूत्र से सिद्धि होने पर पुनः “यद् धृतोच्चैस्त" यह सूत्र आया है इसमें 'तपर करण' होने से ज्ञापित होता है कि द्वन्द्व समास में भी कहीं कहीं औत्तरपदिक ह्रस्व होता है। जैसे 'मध्यमा च विलंबिता च मध्यम विलंबिते" इसमें मध्यम को ह्रस्व हुआ है । इसप्रकार के प्रयोग में बहुधा औत्तरपदिक ह्रस्व