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चतुर्थोऽध्यायः
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सौधर्मेशानसानत्कुमार माहेन्द्रब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्ठशुक्र महाशुक्रशतार सहस्रारेण्वानतप्रारणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु ग्रैवेयकेषु विजयवैजयन्तजयन्तापराजितेषु सर्वार्थसिद्धौ च ॥ १६ ॥
चातुरर्थिकेनारणा स्वभावतो वा सौधर्मादयः संज्ञाः षोडशकल्पानां तत्साहचर्यात्स्वभावतो वा यथासम्भवमिन्द्राणामपि भवन्ति । तद्यथा - तदस्मिन्नस्ति तेन निर्वृत्तस्तस्य निवासाऽदूरभवाविति चतुर्ष्वर्थेषु यथासम्भवं तद्वितोऽगुत्पाद्यते । तत्र सुधर्मा नाम सभा । सास्मिन्नस्तीति सौधर्मः कल्पः । तदस्मिन्नस्तीत्यण् । तत्कल्पसाहचर्यादिन्द्रोऽपि सौधर्मः । ईशानो नाम इन्द्रः स्वभावतः । ईशानस्य निवासः कल्प ऐशानः । तस्य निवास इत्यण् । तत्साहचर्यादिन्द्रोप्यैशानः । सनत्कुमारो नाम इन्द्र: स्वभावत । तस्य निवासः कल्पः सानत्कुमारः । तत्साहचर्यादिन्द्रोऽपि सानत्कुमार: महेन्द्रो नाम इन्द्रः स्वभावतः । तस्य निवासः कल्पो माहेन्द्रः । तत्साहचर्यादिन्द्रोऽपि माहेन्द्रः । ब्रह्मोत्तरकापिष्ठमहाशुक्र
सूत्रार्थ – सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ठ, शुक्र, महाशुक्र, शतार, सहस्रार, आनत, प्राणत आरण और अच्युत ये सोलह स्वर्ग हैं, तथा नवग्रैवेयक च शब्द से नव अनुदिश एवं विजय, वैजयन्त, जयन्त अपराजित और सर्वार्थसिद्धि ये पांच अनुत्तर विमान हैं इन सब में वैमानिक निवास करते हैं । सोलह कल्पों की चार अर्थ वाले अण् प्रत्यय के कारण अथवा स्वभावतः सौधर्म आदि संज्ञायें हैं, उस उस संज्ञा के साहचर्य से अथवा स्वभाव से ही यथा संभव इन्द्रों की भी वे ही संज्ञायें होती हैं । इसी को बताते हैं - वह इसमें है, उससे बना है, उसका निवास है और उसके निकट भावी है इसतरह के चार अर्थों में तद्धित का अण् प्रत्यय लाकर सौधर्म आदि शब्द बनाये जाते हैं । सुधर्मा नाम की सभा है सुधर्मा सभा इसमें है वह सौधर्म कल्प है, "तदस्मिन्नास्ति" अर्थ में अण् प्रत्यय आया है । उस कल्प के साहचर्य से इन्द्र भी सौधर्म नाम से कहा जाता है । ईशान नाम का इन्द्र स्वभाव से है, ईशान का निवास कल्प ऐशान है, "तस्य निवास:" इस सूत्र से अण् प्रत्यय आया है । ऐशान के साहचर्य से इन्द्र भी ऐशान संज्ञक है । स्वभाव से सनत्कुमार नाम का इन्द्र है, उसका निवास कल्प सानत्कुमार है और उसके साहचर्य से इन्द्र भी सानत्कुमार कहा जाता है । महेन्द्र नाम का इन्द्र स्वभावत: है उसका निवास कल्प माहेन्द्र है और उसके साहचर्य से इन्द्र भी माहेन्द्र कहलाता है । ब्रह्मोत्तर, कापिष्ठ, महाशुक्र और