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द्वितीयोऽध्यायः
[ ९५ भवतः । तत्र निर्वृत्तिद्विविधा-बाह्याभ्यन्तरभेदात् । बाह्या चक्षुरादिषु मसूरिकादिसंस्थान रूपा । अभ्यन्तरा चक्षुरादीन्द्रियज्ञानावरणकर्मक्षयोपशमविशिष्टोत्सेधाङ गुलाऽसङ्घय यभागप्रमितात्मप्रदेशसंश्लिष्टसूक्ष्मपुद्गलसंस्थानरूपा । उभयनिर्वृत्तिद्वारेणैवात्मनोऽर्थोपलम्भसम्भवः । उपकरणमपि बाह्याभ्यन्तरविकल्पाद्वधा । तत्र बाह्यमुपकरणमक्षिपत्रपक्ष्मद्वयादि । अभ्यन्तरमुपकरणं कृष्णशुक्लमण्डलादि । इदानीं भावेन्द्रियस्वरूपप्रदर्शनार्थमाह
युक्त उत्सेधांगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण आत्मप्रदेशों पर सूक्ष्म पुद्गलों का उस उस इन्द्रियाकार रूप से संबद्ध होना अभ्यन्तर निर्वृत्ति कहलाती है ।
विशेषार्थ-यहां पर श्री भास्कर नंदी ने द्रव्येन्द्रिय के दो भेदों का वर्णन करते हुए अभ्यन्तर निर्वृत्ति का लक्षण किया है कि-"अभ्यन्तरा चक्षुरादीन्द्रिय ज्ञानावरण कर्म क्षयोपशम विशिष्टोत्सेधांगुलाऽसंख्येयभाग प्रमितात्म प्रदेश संश्लिष्ट सूक्ष्म पुद्गल संस्थानरूपा ।" अर्थात्-चक्षु आदि इन्द्रिय ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से युक्त उत्सेध अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण आत्मा के प्रदेशों में सूक्ष्म पुद्गल का उस उस इन्द्रियाकार रूप से रचना होना अभ्यन्तर निर्वृत्ति है। सर्वार्थ सिद्धि आदि ग्रन्थों में अभ्यन्तर निर्वृत्ति का लक्षण विभिन्न है। वहां कहा है कि उत्सेध अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण शुद्ध आत्मा के प्रदेशों की प्रतिनियति चक्षु आदि इन्द्रियों के आकार से रचना होना अभ्यन्तर निवृत्ति है।
निर्वृत्ति और उपकरण द्रव्येन्द्रिय के भेद हैं, निर्वृत्ति के बाह्याभ्यन्तर दो भेद और उपकरण के बाह्याभ्यन्तर दो भेदों में से एक अभ्यन्तर निर्वत्ति को छोड़कर शेष तीनों द्रव्येन्द्रियां पुद्गल द्रव्य रूप सर्वत्र मानी गई हैं केवल अभ्यन्तर निर्वृत्ति को आत्मरूप अन्य ग्रन्थ में माना है । यहां पर चारों द्रव्येन्द्रियों को पुद्गल रूप माना है, संभव है कि श्री भास्करनंदी ने द्रव्येन्द्रिय पद के द्रव्य शब्द को लक्ष्य में रखा है। भावेन्द्रियां तो आत्मारूप होती ही हैं । अस्तु ।
इसतरह बाह्य और अभ्यन्तर निर्वत्ति द्वारा ही आत्मा के पदार्थ की उपलब्धि संभव है । अर्थात् दोनों निर्वृत्ति से युक्त आत्मा पदार्थ को जानता है। उपकरण भी बाह्य अभ्यन्तर भेद से दो प्रकार का है। उनमें नेत्र संबंधी बाह्य उपकरण पलक और दोनों बरोनी है । तथा अभ्यन्तर उपकरण कृष्ण शुक्ल मण्डल है ।
इस समय भावेन्द्रिय के स्वरूप का प्रतिपादन करते हैं