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द्वितीयोऽध्यायः
जीवस्य भावलक्षणसाधनविषयेश्वरप्रभेदाश्च गतिजन्म - योनिदेहानपवर्त्यायुष्कभेदाश्चास्मिन्नध्याये
निरूपिताः ॥
शणधरकर निकरसता र निस्तलतरलतल मुक्ताफलहारस्फारतारानि कुरुम्बबिम्ब निर्मल तर परमोदार शरीरशुद्ध ध्यानानलोज्ज्वलज्वालाज्वलिसघन घातीन्धन सङ्घातसकल विमलकेवलालोकित
सकललोकालोकस्वभावश्रीमत्परमेश्वरजिनपतिमत विततमतिचिदचित्स्वभाव
भावाभिधान साधित स्वभावपरमाराध्यतम महा से दान्तः श्रीजिनचन्द्र
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भट्टारकस्तच्छिष्यपण्डितबीभास्करनन्दिविरचित
महाशास्त्रतत्त्वार्थं वृत्ती सुखबोधायां
द्वितीयोऽध्याय समाप्तः ।
जानने में विस्तीर्ण बुद्धि वाले, चेतन अचेतन द्रव्य को सिद्ध करने वाले परम आराध्य भूत महा सिद्धांत ग्रंथों के जो ज्ञाता हैं ऐसे श्री जिनचन्द्र भट्टारक हैं, उनके शिष्य पण्डित श्री भास्करनन्दी विरचित सुखबोधा नामवाली महाशास्त्र तत्त्वार्थ सूत्र की टीका में द्वितीय अध्याय पूर्ण हुआ ।