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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती भ्यन्तरे हैमवतवर्षः । तन्मध्ये योजनसहस्रोच्छायोऽर्धतृतीययोजनशतावगाहः उपरि मूले च योजनसहस्रायामविष्कम्भः शब्दवान् वृत्तवेदाढ्यः पटहाकारोऽद्रिरस्ति । महाहिमवनिषधपूर्वापरसमुद्राणामन्तरे हरिवर्षः । तन्मध्ये विकृतवान् वृत्तवेदाढयो नगः पटहाकृतिः शब्दवृत्तवेदाढ्य न तुल्यवर्णनः । अथ कथं विदेहसंज्ञा ? उच्यते-विगतो देहो येषां पुसां ते विदेहास्तद्योगाज्जनपदे विदेहव्यपदेशः । के पुनस्ते विगतदेहा इति चेत् कथ्यन्ते-येषां कर्मसम्बन्धसन्तानोच्छेदा(हो नास्ति ये वा सत्यपि देहे विगतशरीरसंस्कारास्ते विदेहास्तत्सम्बन्धाज्जनपदोऽपि विदेहसंज्ञको भवति । तत्र हि सततं धर्मोच्छेदाभावान्मुनयो देहोच्छेदार्थ यतमाना विदेहत्वमास्कन्दन्तो विदेहाः सन्तीति प्रकर्षापेक्षो विदेहव्यपदेशो रूढः । क्व पूनरसौ सन्निविष्टः ? निषधस्योत्तरान्नीलतो दक्षिणात्पूर्वापरसमुद्रयोरन्तरे विदेहस्य सन्निवेशो द्रष्टव्यः । स च चतुर्धा पूर्वविदेहादिभेदात् । कुत इति चेत्—मेरोः प्राक्क्षेत्र पूर्वविदेहः । उत्तरक्षेत्रमुद
हिमवान् कुलाचलों के मध्य में हैमवत क्षेत्र है। इस क्षेत्र के मध्य भाग में शब्दवान नाम का वृत्त वैताढय पर्वत है, इसकी ऊंचाई हजार योजन की है अवगाह ढ़ाई सौ योजन का है और ऊपर नीचे एक हजार योजन का समान विस्तार है । यह पटहाकार है। महाहिमवन् और निषध पर्वत तथा पूर्वापर समुद्र के अन्तराल में हरि क्षेत्र का विन्यास है । इस हरिवर्ष के मध्य में विकृतवान् नामवाला वृत्तवैताढ्य पर्वत है, यह भी शब्दवान के समान प्रमाण वाला पटहाकार है। विदेह संज्ञा किसप्रकार है ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं-"विगतः देहः येषां पुसां सः विदेहः" जहां मनुष्यों का देह विगत हो जाता है-नष्ट हो जाता है वे विदेह कहलाते हैं उनके संयोग से देश विदेह संज्ञावाला है।
शंका-विगत देह वाले वे कौन हैं ?
समाधान-कर्म बंध के संतान का उच्छेद-( नाश ) हो जाने से जिनके देह नहीं है अथवा देह के रहते हुए भी देह के संस्कार से रहित हैं वे जीव विदेह हैं और उनके संबंध से जनपद भी विदेह संज्ञक होते हैं, क्योंकि उनमें धर्म का विच्छेद नहीं होता अतः सतत ही मुनिगण देह के नाश के लिये प्रयत्न शील होकर विदेहत्व को प्राप्त होते हैं अतः प्रकर्ष की अपेक्षा विदेह संज्ञा रूढ है । अभिप्राय यह है कि इस क्षेत्र में धर्म का अभाव नहीं होता, मुनि ध्यान द्वारा कर्म नोकर्म शरीर रहित होकर मुक्त होते रहते हैं, इस प्रकर्ष के कारण यह क्षेत्र सार्थक विदेह संज्ञा वाला है। इसका सन्निवेश बतलाते हैं-निषध पर्वत के उत्तर में नील पर्वतके दक्षिण में पूर्वापर समुद्र के मध्य में विदेह का सन्निवेश है। इसके पूर्व विदेह आदि चार भाग हैं, वे कैसे सो