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तृतीयोऽध्यायः
[ १४५ प्रभाससंज्ञानि । तानि समुदितानि अष्टचत्वारिंशत्तीर्थानि पूर्वविदेहे भवन्ति । शीतोदया महानद्या अपरविदेहो द्विधा विभक्तो दक्षिण उत्तरश्चेति । तत्र दक्षिणो भागश्चतुभिर्वक्षारपर्वतैस्तिसृभिश्च विभङ्गनदीभिर्विभक्तोऽष्टधा भिन्नोऽष्टाभिश्चक्रधरैरुपभोग्यः । तत्र शब्दावत्, विकृतावत्, आशीविष, सुखावहसंज्ञाश्चत्वारो वक्षाराद्रयः । तेषामन्तरेषु क्षारोदा, शीतोदा, स्रोतोऽन्तर्वाहिनी चेति तिस्रो विभङ्गनद्यः । एतैविभक्ता अष्टौ जनपदाः । पन, सुपद्म, महापद्म, पद्मावच्छङ्ख, नलिन, कुमुद, सरिताख्यास्तेषां मध्ये राजधान्यः। अश्वपुरी, सिंहपुरी, महापुरी, विजयपुरी, अरजा, विरजा, अशोका, वीतशोका चेति नगर्यः । तेषु जनपदेषु द्वे द्वे नद्यौ रक्ता रक्तोदासंज्ञे। एकैको विजयार्धश्च । तेषां सर्वेषां विष्कम्भायामादिवर्णना पूर्ववद्वेदितव्या। देवारण्ये द्वेऽपि पूर्ववद्वेदितव्ये । उत्तरो विभागश्चतुभिर्वक्षारपर्वतैस्तिसृभिविभङ्गनदीभिश्च विभक्तोऽष्टधा भिन्नोऽष्टाभिश्चक्रधरैरुपभोग्यः। तत्र चन्द्र, सूर्य, नाग, देवसञ्ज्ञाश्चत्वारो वक्षारपर्वताः । तेषामन्तरेषु गम्भीरमालिनी, फेनमालिनी, ऊर्मिमालिनी चेति तिस्रो विभङ्गनद्यः एतैविभक्ता अष्टौ जनपदाः। वप्र, सुवप्र, महावप्र, वप्रावत्, वल्गु, सुवल्गु, गन्धिल, गन्धमालिसंज्ञास्तेषां मध्ये राजधान्यः । विजया, वैजयन्ती, जयन्ती, अपराजिता, संबंधी सोलह जनपदों के अड़तालीस होते हैं । इसप्रकार शीता नदी संबंधी विदेहों का वर्णन पूर्ण हुआ। शीतोदा महानदी के द्वारा पश्चिम विदेह दो प्रकार से विभक्त हआ है दक्षिण और उत्तर । उनमें दक्षिण भाग के चार वक्षार और तीन विभंगा नदियों द्वारा आठ विभाग हो गये हैं जो आठ चक्रवर्ती द्वारा उपभोग्य हैं। उनमें जो चार वक्षार हैं उनके नाम शब्दवान्, विकृतवान्, आशीविष और सुखावह हैं। इनके अन्तरों में क्षारोदा शीतोदा, स्रोतोऽन्तर्वाहिनी नामवाली तीन विभंगा नदियाँ हैं। इन सातों द्वारा विभक्त आठ जनपद होगये हैं इनके नाम पद्म, सुपद्म, महापद्म, पद्मावत्, शंख, नलिन, कुमुद और सरित हैं । उन देशों में राजधानी नगरी अश्वपुरी, सिंहपुरी, महापुरी, विजयपुरी, अरजा, विरजा, अशोका और वीतशोका नाम वाली हैं। उन आठ जनपदों में प्रत्येक में दो दो रक्ता रक्तोदा नदी हैं, एक एक विजयार्ध है। उन सभी का विष्कंभ आयाम आदि का वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिये तथा दो देवारण्य भी पूर्ववत् जानने चाहिये । शीतोदा महानदी का उत्तर विभाग भी चार वक्षार पर्वत और तीन विभंगा नदियों द्वारा विभक्त हुआ आठ भेद वाला हो जाता है और आठ ही चक्रधरों द्वारा उपभोग्य होता है । इनके वक्षारों के नाम चन्द्र, सूर्य, नाग और देव हैं । उन बक्षारों के अन्तरों में गंभीरमालिनी, फेनमालिनी और अमिमालिनी नामकी तीन विभंगा नदियां हैं। उन सबसे विभक्त आठ जनपद हैं उनके नाम वप्र, सुवप्र, महावप्र, वप्रावत्, वल्गु, सुवल्गु, गंधिल और गंधमालि । इनमें राजधानी नगरियां विजया,