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प्रस्तावना :: 19
आज आधुनिक विज्ञान का विकास भी जैन धर्म के तत्त्वार्थसूत्र के अनुश्रेणी गति इस सूत्र के अनुसार ही हो रहा है। टी.वी., कम्प्यूटर, दूर संचार व्यवस्था आदि इसी सूत्र की देन हैं। जब भी टी.वी. या कम्प्यूटर पर चित्र बनाते हैं तब उनकी स्क्रीन पर ग्राफ्स बनते हैं। उन्हीं ग्राफ्स के अनुपात से चित्र बनते हैं। समय बताने वाली इलेक्ट्रानिक घड़ियों में भी समय की संख्या ग्राफ्स द्वारा ही उभरकर आती है। शून्य भी गोलाकार न होकर चौकोर बनकर आता है। दो आदि की संख्याएँ भी ऐंगिल से मुड़कर ही बनती हैं, यही अनुश्रेणी गति का सिद्धान्त है।
छहों द्रव्यों में अन्तिम द्रव्य है काल, क्योंकि उसमें भी द्रव्य के लक्षण पाए जाते हैं। काल द्रव्य सभी द्रव्यों का उपकार करता है। यदि काल द्रव्य न हो तो सभी द्रव्य कूटस्थ (अपरिवर्तनीय) हो जाएँगे, जिससे सभी द्रव्यों की सभी व्यवस्थाएँ--अवस्थाएँ अपरिवर्तनीय होने से सभी द्रव्यों में अनवस्था दोष उत्पन्न हो जाएगा। कालद्रव्य सभी द्रव्यों की पर्यायों में परिवर्तन कराने में उदासीन कारण है, क्योंकि द्रव्यों के उत्पाद-व्यय की गणना कालद्रव्य के द्वारा ही होती है अन्यथा काल द्रव्य के वस्तुत्व गुण का अभाव होने से काल द्रव्य की महत्ता ही समाप्त हो जाएगी।
व्यावहारिक दृष्टिकोण से कालद्रव्य को समय (टाइम) के रूप में स्वीकार किया है, जिसका व्यावहारिक विभाजन घड़ी, घण्टा, मिनट, सैकेण्ड आदि के रूप में किया जाता है। 'समय' निश्चय काल का एक रूप है, परन्तु जीव और पुद्गल की गति द्वारा अभिव्यक्त होने के कारण 'परिणाम' कहा जाता है।
एक शुद्ध पुद्गल परमाणु को आकाश के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक मन्दगति से गमन करने में जितना काल लगता है उसे एक समय कहते हैं, अतः एक समय का माप एक पुदगल परमाणु की मन्दगति से निकाला गया है।
शंका-वैसे तो एक शुद्ध पुद्गल परमाणु तीव्रगति से लोकाकाश में चौदह राजु गमन कर सकता है, इस तीव्रगति में भी वह पदगल परमाण लोकाकाश के असंख्यात प्रदेशों को छता हआ एक ही समय में जाता है. अतः एक समय के भी असंख्यात समय भेद होना चाहिए?50
समाधान नहीं, क्योंकि जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपने हाथ से एक चावल को मन्दगति से उठाकर एक समान दूरी पर आराम से पहुँचा देता है, वही व्यक्ति एक मुट्ठी भर चावल तीव्रगति से उससे भी अधिक दूरी तक पहुँचा देता है। इस प्रसंग में एक चावल की समान दूरी एवं मन्दगति तथा एक मुट्ठी चावल की अधिक दूरी एवं तीव्रगति का विश्लेषण समझना जरूरी है। जहाँ एक चावल को तीव्रगति से एक समय में उठाकर दूर तक रखने में मुट्ठी भर चावल के बराबर समय का भेद नहीं हुआ, समय तो एक ही लगता है। उसी प्रकार एक समय में तीव्रगति वाले पुद्गल परमाणु का लोकाकाश के चौदहराजु के असंख्यात प्रदेश छूने से समय भेद नहीं है। इससे सिद्ध होता है समय अविभाज्य है।
समय को कालाणु भी कहते हैं, लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर एक-एक कालाणु रत्नों की राशि के समान स्थित है। कालाण का आकार भी जैसे-आकाश प्रदेश के आकार के समान परमाणु है वैसा ही कालाण
46. तत्त्वा . सू., अ. 2, सू. 30 47. तत्त्वा . सू., अ. 5, सू. 29-30 48. तत्त्वा . सू., अ. 5, सू. 22 49. प्र. सा., गा. 139 ता. प्र. 50. प्र. सा., गा. 139 त. प्र. 51. द्र. सं., गा. 22
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