Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ . 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000०००
२. पापानुबन्धी पुण्य - वर्तमान में तो पुण्य का उदय है किन्तु आगामी काल के लिये पाप का अनुबन्ध करावे । जैसे - ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती।
३. पापानुबन्धी पाप - वर्तमान में भी पाप का उदय है और फिर आगामी काल में भी पाप का , अनुबन्ध करावे । यथा - कालसौकरिक कसाई तथा सिंह व्याघ्र सर्प बिल्ली आदि वर्तमान में भी पाप.. उदय है और मर कर नरकादि दुर्गतियों में आता है । . ४. पुण्यानुबन्धी पाप - वर्तमान में तो पाप का उदय है किन्तु आगामी काल में पुण्य (शुभ) का अनुबन्ध करावे । यथा - हरिकेशी मुनि तथा चण्डकौशिक सर्प, नन्द मणियार (मणिकार) का जीव मेंढक।
प्रश्न - पुण्यानुबन्धी पुण्य का उपार्जन किस तरह होता है ?
उत्तर - वीतराग कथित आगमों पर दृढ़ श्रद्धा रखते हुए निदान (नियाणा) रहित शुद्ध चारित्र का पालन करने से पुण्यानुबन्धी पुण्य का बन्ध होता है।
उपरोक्त चार भङ्गों में से प्रथम भङ्ग सर्वश्रेष्ठ है, भरत चक्रवर्ती महान् पुण्य का उदय रूप चक्रवर्ती पद को भोग कर रत्नजड़ित स्वर्ण सिंहासन पर बैठे हुए केवलज्ञान प्राप्त कर उसी भव में मोक्ष चले गये ।
तज्जीवतच्छरीर वादी का मत है कि - पुण्य और पाप ये दोनों ही नहीं हैं क्योकि इनका धर्मी रूप आत्मा ही नहीं है जबकि आत्मा ही नहीं है तो इस लोक से भिन्न परलोक (दूसरा लोक) भी नहीं है । जहां जाकर पुण्य और पाप का फल भोगा जाता हो। कारण यह है शरीर रूप में स्थित पांच भूतों के नाश होने से अर्थात् उनके अलग अलग होने से आत्मा का विनाश हो जाता है। अतः शरीर नष्ट हो जाने पर उससे निकल कर आत्मा परलोक में जाकर पुण्य-पाप का फल भोगता है । यह मान्यता ठीक नहीं है ऐसा उपरोक्त वादी का मत है ।
कुव्वं च कारयं चेव, सव्वं कुव्वं न विज्जइ । एवं अकारओ अप्पा, एवं ते उ पगब्भिया ॥१३॥
कठिन शब्दार्थ - कुव्वं - करने वाला, कारयं (कारवं)- कराने वाला, ण विज्जइ - नहीं है, अकारओ - अकारक, पगब्भिया - धृष्टता करते हैं ।
भावार्थ - आत्मा स्वयं कोई क्रिया नहीं करता है और दूसरों के द्वारा भी नहीं करवाता है तथा वह सब क्रियायें नहीं करता है । इस प्रकार वह आत्मा 'अकारक' यानी क्रिया का कर्ता नहीं है ऐसा, अकारकवादी सांख्य आदि कहते हैं ।
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