Book Title: Suryapraksh Pariksha
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 8
________________ " [ 7 ] पढना तो अलग रहा छूना भी पसंद नहीं करेंगे । अच्छा होता यदि अनुवादक महाशय मूलार्थ जैसा का तैसा लगट करके टिप्पणी में चाहे जो कुछ लिखते, इससे अनुवादका मूल्य बढ़ जाता। अथवा जिनजिन विषयोंपर आपको विवेचन करना था उनपर स्वतंत्र ही लिखते तो भी अच्छा होता । परन्तु उन्होंने ऐसे पूर्वापरविरोधी आगमविरोधी, वोर प्रभुका अवर्णवाद करने वाले ग्रंथका सहारा लिया इससे जनतापर उलटाही प्रभावपड़ा। अन्तमें मैं श्रीमान् क्षुल्लक ज्ञानसागरजी और मुनिसंघ से भी सादर निवेदन करताहूं कि वे इस प्रन्थपरीक्षा की रोशनी में पुनः इस ग्रंथपर विचार करके अपना मत प्रगट करनेको कृपा करें, तथा भविष्य में ऐसे ग्रंथोंका ही प्रकाशन व समर्थन करें जो वीरवाणीके अनुसार श्रीकुन्दकुन्दादि माननीय आचार्यो द्वारा रचित होवें - अर्थात् जो मिथ्यात्व अधकारके नाशक, रागद्वेषादि संसारको परिपाटीके उच्छेदक तथा वीतरागताविज्ञानताके पोषक होवें ! और जनता से भी सम्ग्रह प्रेरणा है कि वह भी अब परीक्षा के समय में ज्यो त्यो किसी पूर्व ऋषि के नाम मात्रले ठगा नहीं किन्तु उन ऋषियोंके अन्यान्य वचनों से, आगम और अनायसे मिलान करें, फिर अनुमान और अनुभव से जांच करके ही स्वीकार करें; क्योंकि जितने बचन वीतराग विज्ञानताके पोषक हैं वे सब जैनवचन है और जो रागादिकबर्द्धक हैं वे सब जैनधर्मके विरुद्ध मिथ्याशास्त्र या वचन हैं । मैंने ये विचार सज्जनोंके विचारनेके लिये लिखे हैं। मुझे किसी से कोई विरोध नहीं है। मैं तो सत्य जिन (वीर) वाणी का प्रकाश चाहता हूं, उसीका उपासक हूँ । ऋषभब्रह्मचर्याश्रम, मथुरा कु० व० ९, वीराब्द २४५९ श्री वीर-शासन - सेबी दीपचन्द्र वर्णी

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