Book Title: Supasnahachariyam Part 02
Author(s): Lakshmangani, Hiralal Shastri
Publisher: ZZZ Unknown
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भवणापडायाकहा।
२८७
वत्थाहारिहिं पवरिहिं गुरुगउखु करइ, सो अवसि सुरलोयह सामित्तणु धरइ ॥२१॥ सीलालंकियसावियहं वरपडिवत्ति करेइ जु इहभवि ।
इह अँजिवि वरमणुयसुहु सुररमणिह पिउ होइ सु परभवि ॥२२॥ ता एअं नाऊणं दाणफलं बहुसुहाण संजणयं । उजमियव्वं विहवाणुसारओ दाणधम्मम्मि ॥२३॥ बहु मन्नेउं वयणं सिरिसिरिचंदस्स मुणिवरिंदस्स । पणमियतप्पयकमला समयम्मि समुट्टिया देवी ॥२४॥ गुरुवयणेणं तत्तो सविसेसं चेव सत्तखित्तेसु । वावइ विहीए दव्वं दावइ दीणाइयाणपि ॥२५॥ अह पडिवन्नदिणेसु पसत्थतिहिरिक्खकरणजोगम्मि । सुपसत्थम्मि मुहुत्ते सुहेण सा पसविया धूयं॥२६॥ उज्जोयति कंतीए मूईभवणं नेहप्पएसंव । नवससिकलंव संजणियसयलजणनयणआणंदं ॥२७॥ बद्धावणयं काउं बारसदिवसम्मि सुहमुहुत्तम्मि । सुमिणाणुसारओ तो भवणपडायत्ति कयनामा ॥२८॥ सिरिसिद्धरायभवणे का पलया इव सुमेरुकुहरम्मि । पणयजणपूरियासा वड्ढइ बाला निरुवसागं ॥२९॥ नरवरमंदिरमाणससरोवरे रायहंसपरियरिए । जणकरयलकमलेसु संचरए रायहंसिव्व ॥३०॥ वाला सचमक्कारं विरयंती बुहजणं अह कयाइ । पयडइ नरिंदभणिया पन्नच्छेज्जम्मि कोसल्लं॥३१॥ जं किंचि उवज्झाओ सिक्खवइ पढावए लिहावेइ । तं तं वाला सव्वं लेइ लहुं पुव्वपढियव ॥३२॥ वागरणछंदलंकारतक्कसिद्धंतजोइसाईणि । चउसटिविनाणाइं सिक्खए थोवदियहेहिं ॥३३॥
यस्तथा दृढसम्यक्त्वानां साधर्मिकजनानां, जिनवरपदानुरक्तानां भक्तानां गुरुजनस्य । वस्त्राहारैः प्रवरैर्गुरुगौरवं करोति, सोऽवश्यं सुरलोकस्य स्वामित्वं धरति ॥२१॥ शीलालंकृतश्राविकाणां वरप्रतिपत्तिं करोति य इहभवे ।
इह भुक्त्वा वरमनुजसुखं सुररमणीनां प्रियो भवति स परभवे ॥२२॥ तस्मादेतज्ज्ञात्वा दानफलं वहुसुखानां संजनकम् । उद्यन्तव्यं विभवानुसारतो दानधर्म ॥२३॥ बहु मत्वा वचनं श्रीश्रीचन्द्रस्य मुनिवरेन्द्रस्य । प्रणततत्पादकमला समये समुत्थिता देवी ॥२४॥ गुरुवचनेन ततः सविशेषमेव सप्तक्षेत्रेषु । वापयति विधिना द्रव्यं दापयति दीनादिकेभ्योऽपि ॥२५॥ अथ परिपूर्णदिनेषु प्रशस्ततिथिऋतकरणयोगे । सुप्रशस्ते मुहूर्ते सुखेन सा प्रसूता दुहितरम् ॥२६॥ उद्द्योतयन्ती कान्त्या सूतिभवनं नभःप्रदेशमिव । नवशशिकलामिव संजनितसकलजननयनानन्दाम् ॥२७॥ वर्धनकं कृत्वा द्वादशदिवसे शुभमुहूर्ते । स्वप्नानुसारतस्तनो भवनपताकति कृतनामा ॥२८॥ श्रीसिद्धराजभवने कल्पलतेव सुमेरुकुहरे । प्रणतजनपूरिताशा वर्धते बाला निरुपसर्गम् ॥२९॥ नरवरमन्दिरमानससरोवरे राजहंसपरिकरिते । जनकरतलकमलेषु संचरति राजहंसीव ॥३०॥ बाला सचमत्कारं विरचयन्ती बुधजनमथ कदाचित् । प्रकटयति नरेन्द्रभणिता प्रज्ञाछेदे कौशलम् ॥३१॥ यत् किश्चिदुपाध्यायः शिक्षयति पाठयति लेखयति । तत्तद् बाला सर्वं लाति लघु पूर्वपठितमिव ॥३२॥
१ ख. नहंगणुसं । २ क. कलाव । ३ क. °णमणपमोए । ४ ख. ग. भुव।
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