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श्रमण)
यशस्तिलक चम्पू में आयुर्वेदीय स्वस्थवृत्त
सम्बन्धी विषय
आचार्य राजकुमार जैन
यशस्तिलक चम्पू जैन साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जो गद्य और पद्यमय शैली में संस्कृत भाषा में रचित है। इसकी रचना सोमदेव सूरि ने की है और इसमें महाराज यशोधर के जीवन चरित्र को आधार बनाया गया है। यह ग्रन्थ जैन साहित्य की ही नहीं, अपितु संस्कृत साहित्य की एक अमूल्य निधि है। सम्पूर्ण ग्रन्थ में दो हजार तीन सौ ग्यारह पद्य तथा शेष गद्य है। सोमदेव ने गद्य और पद्य दोनों मिला कर आठ हजार श्लोक प्रमाण बतलाया है।
यशस्तिलक चम्पू की पुष्पिका में यह उल्लिखित है कि चैत्र शुक्ल १३, शक संवत् ८८१ (१०१६ वि०सं०- ९५९ ई०) में श्री कृष्णराजदेव पाण्ड्य के सामन्त एवं चालुक्यवंशीय अरिकेशरी के प्रथम पुत्र वद्दिमराज की राजधानी गंगधारा में सोमदेव ने इस ग्रन्थ की रचना पूर्ण की थी। राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष के तृतीय पुत्र कृष्णराजदेव (जिनका दूसरा नाम अकालवर्ष भी था) का राज्य काल ८६७ से ८९४ शक संवत् तक रहा। इस दृष्टि से सोमदेव का स्थिति काल और उनकी कृति यशस्तिलक चम्पू का रचना काल सुस्पष्ट है।
सोमदेव एक समन्वयवादी विचारधारा के उदारचेता विद्वान् थे। यही कारण है कि जैमिनि, कपिल, चार्वाक, कणाद आदि के शास्त्रों पर भी उनका समान भाव से आदर था। उनके इस उदार दृष्टिकोण का आभास उनके ग्रन्थों का अध्ययन करने से सहज ही हो जाता है। उनका व्याकरण, कला, छन्द, अलङ्कार आदि के शास्त्रों-विषयों पर पाण्डित्यपूर्ण अधिकार था। यही कारण है कि ये विषय उनकी कृतियों में पर्याप्त रूप से मुखरित हुए हैं। इसके साथ ही यह असन्दिग्ध रूप से कहा जा सकता है कि
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