Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ = 1 सोलहकारण धर्म | व्यवहार काल - घड़ी घंटा दिवस आदिकी कल्पना रूप है जो निश्रम कालकी समयरूप पर्यायसे उत्पन्न होता है | एक पुद्गलका परमाणु जब मंदगतिसे एक कालाणु अन्य कालाणु पर जाता है और उसके जाने में जो समय लगता है उसे एक समय कहते हैं । जैसे पुद्गल परमाणु कालका अणु ( कालाण ) और आकाशका प्रदेश सबसे छोटा होता है, उसी प्रकार समय भी सबसे छोटा कालका विभाग है। ऐसे अनन्त समयोंकी १ आवली घडी घटा दिवस पक्ष मास वर्ष युग युगांतर आदिको कल्पना की जाती हैं । आकाश द्रव्य - वह पदार्थ है जो जीव, पुदगल, धर्म, अधर्म और काल आदि द्रव्योको अवगाहना ( स्थान ) दे । यह भी दो प्रकार हैं- लोकाकाश और अलोकाकाश । लोकाकाश-जहां उक्त जीवादि पांच द्रव्य पाए जावें । अलोकाकाश-जहां पर केवल आकाश मात्र ही हो । इसी अनन्त अलोकाकाशके मध्य में असंख्यात्प्रदेशी लोकाकाश है । यह भी अखण्ड एक द्रव्य है । आस्रव - जीवके रागद्वेषादि चैतन्य विभाग भावो द्वारा योगोंकी प्रवृत्तिके होने से पुद्गल ( द्रव्य कर्म परमाणुओका जीवकी ओर आना । यह शुभ और अशुभ दो प्रका होता है । शुभ अर्थात् पुण्य और अशुभ अर्थात् पाप । बन्ध - योग और कषायोंके निमित्तस जीव और पृगल कर्म परमाणुओंका एक क्षेत्रावगाह रूप सम्बन्ध होना सो आस्रव भेदके यह शुभाशुभ दो भेदरूप होते हैं । - संवर- आते हुये कर्म परमाणुओंको योगोंका निरोध:

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 129