Book Title: Solahkaran Dharma Dipak Author(s): Deepchand Varni Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia View full book textPage 9
________________ सोलह्कारण धर्म | [ ७ दो प्रकारका होता है । • अणु - पुद्गलका वह छोटेसे छोटा भाग है, कि जिसका दुसरा भाग न हो सके 1 स्कंध - दो आदि संख्यात, असंख्यात तथा अनंत अणुबाँके एक बंधानरूप पिण्डको कहते हैं । पुद्गल द्रव्य भी लोकमें अनन्तानन्त हैं । अमूर्तीक - जो स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण रहित हो । ये चार प्रकार के होते हैं- धर्म, अधर्म काल और आकाश । धर्म द्रव्य - जो पदार्थ जीव और पुद्गलको चलनेमें उदासीन रूपसे सहकारी कारण मात्र हो, प्रेरक न हो, जैसे मछलीको पानी। वह समस्त लोकाकाशमे व्याप्त अखंड संदेश एक ही तव्य है। 1 अध द्रव्य – जो पदार्थ जीव पुद्गलको स्थिर रहने उदासोन रूपये सहकारी कारण मात्र हो प्रेरक न हो । जैसे पथिकको वृक्षकी शीतल छाया । यह द्रव्य भी वर्मद्रव्य के समान समस्त लोकाकाशमें व्याप्त अखंड असंख्यातप्रदेशी एक ही द्रव्य है । काल द्रव्य - वह पदार्थ है ( कोई कोई श्वेताम्बरादि बाचार्य कालको द्रव्य उपचारसे मानते हैं) जो पदार्थोंकी बस्था बदलने में उदासीन रूपसे निमित्त कारण हो । यद्द असंस्थात कालाणु रूप द्रव्य रत्नोंकी राशिके समान पृथक पृथक समस्त लोकाकाशमें भर रहा है। सो यह निश्चय और व्यवहार दो प्रकारका होता है । निश्चय काल - केवल वर्तमानरूप है। इसके असंख्यात प्रदेश परस्पर एक दुसरेसे भिन्न हैं जो कभी नहीं मिलते हैं, इससे इसको अकाय भी कहते हैं ।Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 129