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सोलह्कारण धर्म |
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दो प्रकारका होता है ।
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अणु - पुद्गलका वह छोटेसे छोटा भाग है, कि जिसका दुसरा भाग न हो सके 1
स्कंध - दो आदि संख्यात, असंख्यात तथा अनंत अणुबाँके एक बंधानरूप पिण्डको कहते हैं । पुद्गल द्रव्य भी लोकमें अनन्तानन्त हैं ।
अमूर्तीक - जो स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण रहित हो । ये चार प्रकार के होते हैं- धर्म, अधर्म काल और आकाश । धर्म द्रव्य - जो पदार्थ जीव और पुद्गलको चलनेमें उदासीन रूपसे सहकारी कारण मात्र हो, प्रेरक न हो, जैसे मछलीको पानी। वह समस्त लोकाकाशमे व्याप्त अखंड संदेश एक ही तव्य है।
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अध द्रव्य – जो पदार्थ जीव पुद्गलको स्थिर रहने उदासोन रूपये सहकारी कारण मात्र हो प्रेरक न हो । जैसे पथिकको वृक्षकी शीतल छाया । यह द्रव्य भी वर्मद्रव्य के समान समस्त लोकाकाशमें व्याप्त अखंड असंख्यातप्रदेशी एक ही द्रव्य है ।
काल द्रव्य - वह पदार्थ है ( कोई कोई श्वेताम्बरादि बाचार्य कालको द्रव्य उपचारसे मानते हैं) जो पदार्थोंकी बस्था बदलने में उदासीन रूपसे निमित्त कारण हो । यद्द असंस्थात कालाणु रूप द्रव्य रत्नोंकी राशिके समान पृथक पृथक समस्त लोकाकाशमें भर रहा है। सो यह निश्चय और व्यवहार दो प्रकारका होता है ।
निश्चय काल - केवल वर्तमानरूप है। इसके असंख्यात प्रदेश परस्पर एक दुसरेसे भिन्न हैं जो कभी नहीं मिलते हैं, इससे इसको अकाय भी कहते हैं ।