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लघुहारीत स्मृति
४. गृहस्थाश्रम धर्मवर्णनम् : ६८१ वेदाध्ययन के अनन्तर ब्राह्मविवाह विधि से विवाह प्रातःकाल उठकर दन्तधावन का विधान और दन्तधावन की लकड़ी
तथा मन्त्रों से स्नान, प्रातःकाल जब सूर्य लाल-लाल दिखाई पड़ता है उस समय मन्देह नामक राक्षसों के साथ सूर्य का युद्ध होता है अतः प्रातःकाल गायत्री मंत्र से सूर्य को अर्घ्यदान देना लिखा है। मरीचि आदि ऋषि और सनकादि योगियों ने भी प्रातःकाल सूर्य को अर्घ्यदान देना बताया है । जो
मनुष्य अर्घ्यदान नहीं करता है वह नरक में जाता है स्नान करने की विधि और स्नान करने के मन्त्र पानी तीन चुल्लू पीना और पानी को अञ्जली भर सिर पर
डालना । कुशा को हाथ में लेकर पूर्व की ओर मुख करके
प्रोक्षण करे प्राणायाम और गायत्री के मन्त्र जपने की विधि । जप के मन्त्र का
उच्चारण करने का विधान । जप के तीन मुख्यभेद वाचिक, उपांशु और मानस । जप करने से देवता प्रसन्न होते हैं यह बताया गया है । जो नित्य गायत्री का जप करता है वह पापों से छूट जाता है । गायत्री जप करने के बाद सूर्य को पुष्पांजलि दे और सूर्य की प्रदक्षिणा कर नमस्कार करे पश्चात्
तीर्थ के जल से तर्पण करे ब्रह्मयज्ञ के मंत्रों का वर्णन अतिथि पूजन और वैश्वदेव की विधि पहले सुवासिनी स्त्री और कुमारी को भोजन करावे फिर बालक
और वृद्धों को भोजन करावे तब गृहस्थी भोजन करे। भोजन से पूर्व अन्न को हाथ जोड़े और पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके पहले "प्राणाय स्वाहा" इत्यादि मन्त्रों से पांच आहुति देवे तब आचमन कर लेवे इसके बाद मौन पूर्वक स्वादिष्ट भोजन करे
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