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गौतम स्मृति ५-६ गृहस्थाश्रमवर्णनम् : १८८७ महस्थाश्रम में गृहस्थ के कर्तव्य और गृहस्थाश्रम का वर्णन ।
७. आपद्धर्मवर्णनम् : १८८६ आपतकाल में वर्णाश्रमी दूसरे वर्ण के कर्म को भी कर सकता है।
८. संस्कारवर्णनम् : १८८६ संस्कृत जीवन की गरिमा--
बोलोके धृतवतो राजा ब्राह्मणश्च बहुश्रुतस्तयो प्रचतुर्विधस्य मनुष्य जातस्यान्तः सज्ञानाञ्चलन पतनसर्पणामायत्तंजीवनं प्रसूतिरक्षणम
संकरोधर्मः। जिसका संस्कार होता है उसमें सभी उदात्तगुणों का आधान होने से ब्राह्मी तनु की प्राप्ति का अधिकार आ जाता है।
६. कर्तव्याकर्तव्यवर्णनम् : १८९० स्नातक गृहस्थ जीवन का प्रवेशार्थी है वह विधि विहित विद्या का साङ्गोपांग
अध्ययन कर भविष्य के गुरुतर उत्तरदायित्व को वहन कर आदर्श रूप से कर्तव्य पालन करता हुआ अपना, समाज का राष्ट्र का हित सम्पादन करता है-स्नातक की आदर्श दिनचर्या उसके नियम और आचार का वर्णन ।
सत्यधर्मा आर्यवत शिष्टाध्यापक शौशिष्टः अतिनिरतः स्यान्नित्यमहिस्रो वुवढ़कारी बमवान शोल एवमाचारो मातापितरौ पूर्वापरान्सम्बन्धान दुरितेभ्यो मोक्षयिष्यन् स्नातकः शश्वब्रह्मलोकान्न आयते ।
१०. वर्णानांवृत्तिवर्णनम् : १८६३ ब्राह्मणक्षत्रियादि वर्गों की पृथक्-पृथक् आजीविका वृत्ति ।
११. राजधर्मवर्णनम् : १८६४ राजधर्म का निर्देशन्यायपूर्वक प्रजापालन राजा का परम धर्म है।
१२. विविध पापकरणे दण्डविधानवर्णनम् : १८६६ भिन्न-भिन्न पापकर्म के दण्ड विधि का निरूपण ।
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