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लोहितस्मृति वैश्वदेव को करने से सफल दोषों का निवारण होता है। नित्य
होम का वजन सतक एवं मृतक में बताया गया है । वैश्वदेव के काल का वर्णन । वैश्वदेव माहात्म्य वर्णन
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१-११
१२-२६
२०-२६
लोहितस्मृति विवाहाग्नी स्मातकर्मविधानवर्णनम् २७०१ विवाहाग्नि में स्मार्त्त कर्मों का वर्णन । जिस स्त्री के साथ सर्वप्रथम
गार्हस्थ्य सम्बन्ध जुड़ता है वह धर्मपत्नी है । उसके विवाह के
समय की अन्नि का ही सभी कार्यों में उपयोग इष्ट है अन्य भार्याओं की अग्नि गौण है उनमें वेदोक्त एवं तन्त्रोक्त प्रयोग
नहीं होना चाहिये : यदि उन्हें काम में भी लें तो अमन्त्रक ही
प्रयोग होना चाहिए सभी स्मार्त कर्म, स्थालीपाक, श्राद्ध, या जो भी नैमित्तिक हो वह सारा प्रथम धर्मपत्नी की अग्नि में ही हो।
अनेकाग्निसंसर्ग: २७०४ सम्पूर्ण अग्नियों का एकत्र संसर्ग का विधिपूर्वक विधान यदि मोह से दूसरी पत्नियों की अग्नि में यागादि का विधान
किया जाय तो वह निष्फल होता है। इसके लिये फिर से मुख्य अग्नि की स्थापना कर फिर विधान
__ करना लिखा है यदि धर्मपत्नी कहीं बाहर चली जाय तो वह अग्नि लौकिक हो
जातो है । अत: प्रातः सायंकाल के नित्य हवन में धर्मपत्नी
का उपस्थित रहना आवश्यक है सीमान्तर जाने पर उस अग्नि का फिर सन्धान (स्थापना) करना
चाहिये।
___ ज्येष्ठाविपत्नीनांतरसुतानांजष्ठयकानिष्ठयविचारः २७०५ सभी कार्यों में धर्मपत्नी की ज्तेष्ठता मानी गई है भले ही दूसरी
पत्नियां अवस्था में कितनी ही बड़ी क्यों न हों
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