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गायत्री मन्त्र का वैशिष्ट्य वर्णन
वेद पठन का अधिकार गायत्री से ही शक्य है
सम्यक्प्रकार गायत्री जप का फल वर्णन
सन्ध्या गायत्री और वेदाध्ययन का फल कब नहीं मिलता
कलि में गायत्री मन्त्र का प्राधान्य
मूक ब्राह्मण का वेदादि व वैदिक कर्मों के करने में योग्यता का
वर्णन
वैदिक कृत्य की सब में प्रधानता
ब्रह्मार्पण बुद्धि से ही सब कर्मों का अनुष्ठान इष्ट है
एक कार्य के अनुष्ठान में कार्यान्तर (दूसरा काम ) वर्जित है
उपासना का महत्त्व
गार्हपत्य अग्नि की स्थापना और उसके उपयोग का वर्णन नित्य होम एवं अग्नि के उपस्थान का विधान
पञ्चपाक न करने की अवस्था में विकल्प का विधान
पञ्चमहायज्ञों का निरूपण
ब्रह्मवेदाध्ययन में अधिकारी होने का वर्णन
ब्रह्मज्ञान की एक साधना का उपासनाक्रम प्रयोग
अग्निहोत्र, दर्शादि एवं आग्रयण, सोत्रामणि और पितृयज्ञों का
निरूपण
वेदों के अनभ्यास से मानव चरित्र का सांस्कृतिक विकास सदा के लिए रुक जाने से राष्ट्र की अवनति होती है चित्तशुद्धि के लिए वेदोक्त मार्ग ही श्रेयस्कर है
चार पितृ कर्मों का वर्णन, उन्हें यथाशक्ति करने का आदेश विविध ऋणों से छुटकारा पाने का प्रकार
वैदिक कर्मों की तुलना में अन्य कार्यों का गौणत्व वर्णन एवं दिव्य
भाषा की योग्यता
नित्यनैमित्तिक कर्मों में विष्णु का आराधन वर्णन दौर्ब्राह्मण्य से मनुष्य सदा दूर रहे
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कण्व स्मृति
२०७-२२३
२२३-२२८
२२६-२४१
२४२-२५६
२६०-२६६
२७०-२८०
२८१-३००
३०१-३२५
३२६-३२७
३२६-३३४
३४०-३४६
३५०-३६०
३६१-३७१
३७२-३८३
३८४-३६४
३६५-४१४
४१५-४२६
४२७-४३३
४३४-४३७
४३८-४४३
४४४-४६८
४६६-४७७
४७८-४८१
४८३-४८८
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