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भारद्वाजस्मृति
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जल में खड़ा हुआ जल में ही आचमन करे, जल के बाहर हो तो
बाहर अंग-न्यास, देवताओं का स्मरण, आचमन कितना लेना चाहिए,
बिना आचमन के कोई कर्म फल नहीं देता अत: इसका बराबर ध्यान रखा जाय
८-४१
५. दन्तधावनविधिवर्णनम् : ३१०१ मुख शुद्धि के लिए दन्तधावन का विस्तार से निरूपण, दन्तधावन
के लिए वज्यं तिथियां एवं समय तथा कौन-कौन काष्ठ ग्राह्य हैं तथा कौन-कौन अग्राह्य हैं इसका निरूपण, मौन होकर दन्तधावन करे
१-२५ स्नानविधिका वर्णन
२६-३८ ललाट में तिलक का विधान
४०-४५ ६. त्रिकालसंध्याविधानकथनम् : ३१०६ एक ही सन्भ्या के कालभेद से तीन स्वरूप-प्रथम काल की ब्राह्मी
दूसरे की (मध्याह्न की) वैष्णवी, तीसरे की रौद्री सन्ध्या कही गई है । यही ऋक्, यजु और सामवेदों के तीन रूप हैं । इनके नित्य ही द्विजमात्र को कर्तव्य इष्ट हैं। सन्ध्या की मुख्य क्रियाओं का विस्तार से परिगणन
१-६८ गायत्री के जपविधान का कथन
९६-१४० गायत्री का निर्वचन
१४१-१६३ जप यज्ञ की महिमा
१६४-१८१ ७. जपमाला विधानकथनम् : ३१२४ जपमाला का विधान और जप माला की प्रतिष्ठा विधि । जप
विधान में अर्थ का प्राधान्य और साथ में मनोयोग पूर्वक करने से ही इष्टसिद्धि मिलती है
१-१२३ ८. जपे निषिद्धकर्मवर्णनम् : ३१३६ जप में निषिद्ध कर्मों का वर्णन
१-१२
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