Book Title: Smruti Sandarbha
Author(s): Nagsharan Sinh
Publisher: Nag Prakashan Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 528
________________ ५२३ ہم رہ رہ श्लोकानुक्रमणी ये तु नित्यं प्रभाषन्ते वृ.गौ. ५.६७ येन यांस्तु गुणेनैषां मनु १२.३९ ये तु वै हेतुकं वाक्यं वृ हा ५.२७ येन येन तु भावेन मनु ४.२३४ ये तु सम्यस्थिता आंउ ६.१६ येन येन तु वर्णेन लघुयम ८५ ये तु स्नानार्थिस्तीर्थ वृ परा २.१०२ येन येन यथाङ्गेन नारद १८.९२ ये ते अपि सागरान्तयाम् वृ.गौ. ४.४० येन येन यथांगेन मनु ८.३३४ ये ते चाग्रासने स्थातुं बृ.गौ. १४.१३ ये नरा भर्तृ पिण्डार्थ औ १.४२ ये ते चान्ये च बहवः वृ.गौ. १.१० ये नरास्तेन वै यांति वृ परा १०.१०१ ये तोषयन्ति निरतं शाण्डि ४.५४ येन व्यावर्तते वायुः वृ परा १२.२१३ ये त्वां दृष्ट्वा नमस्यन्ति वृ.गौ. १०.४० येनांगेनावरो वर्णो नारद १६.२३ ये दन्तकाष्ठादीन लब्ध्वा औ ३.१० येनावपदिति प्रथम व २.३.३१ ये दहन्ति द्विजास्तन्तु पराशर ५.२४ येनास्मिन्कर्मणा लोके मनु १२.३६ ये दाम्भिका ये च वृ परा ६.२७९ येनास्य पितरो याता मनु ४.१७८ ये देवलनपराः संत्यक्त कपिल ३७७ ये नित्या भक्तिकाः बौधा २.३.२० ये देवलोकं पितृलोकमापुः वृ परा ७.२६६ ये नियुक्तास्तु कार्येषु मनु ९.२३१ ये देवास इमं मंत्र आश्व २३.५७ ये नृशंसा दुरात्मान विष्णु म १०१ ये द्विजानामपसदा ये मनु १०.४६ येनेकरूपाश्चाधस्ताद् या ३.१६९ ये धर्ममेव प्रथमञ्चरन्ति बृ.गौ. १४.३३ येनेन्द्राय सुमन्त्रेण ब्र.या. ८.१२ ये धर्मशास्त्रे विहिताश्च वृ परा ६.३७९ ये नैवविद्या न तपो न बृ.गौ. १४.३ ४ ये धीतवेदाः क्रियया वृ परा ६.२१० ये पठन्ति द्विजा वेदं पराशर ८.२८ येन केन चिदंगेन मनु ८.२७९ ये पठन्ति द्विजा वेदं वाधू १७८ येन केनचिदज्ञाता गर्भ लोहि १७२ ये पाकयज्ञाश्चत्वारो बृह १०.१३ येन केनचिदुच्छिष्टो आप ४.१३ ये पाकयज्ञाश्चत्वारो मनु २.८६ येन केन प्रकारेण लोहि ३८७ ये पाकयज्ञाश्चात्वारो व १.२६.११ येन केनापि वात्युक्तं आंपू ६२९ ये पाचयन्ति धरणीं शाण्डि ४.८७ येन केनाप्युपायेन आंपू ५५३ यो प्रतिग्रहिणः पूर्वं साक्षात् कपिल ४७७ येन केनाप्युपायेन कपिल७४५ ये प्रत्यवसिता विप्रा आप ९.७ येन गच्छन्ति विद्वांसः बृह १२.४३ ये प्रयच्छन्ति ते यान्ति वृ.गौ. ५.९० येन चैवां स्वयं उत्पादितं व १.१७.४५ ये प्रयच्छन्ति विप्रेभ्यः वृ.गौ. ५.९७ येन जानन्ति ते यांति वृ परा १२.३३६ ये प्रयच्छन्ति विप्रेभ्य वृ.गौ. ७.७९ येन दानस्य दत्तस्य वृ.गौ. ७.२९ ये ब्रह्मस्वं हरन्ति इह वृ.गौ. ५.४९ येन देवादि मन्त्रेण व २.२.२३ ये भुजते समीपस्था शाण्डि ४.१५० येना देवा पवित्रेति वृ.या. ७.१४ ये भूता विघ्नकर्तारस्ते विश्वा ६.५ येन भूरिश्चाणान्छद्यात् ब्र.या.८.३५३ येभ्यो वापि पिता बृ.या. ७.८० येम यत् क्रियते कर्म बृ.या. १.२४ ये मे कुले लुप्तपिंडा वृ परा २.२११ येन यदृषिणां दृष्टं वृ परा २.४४ ये यच्छन्ति दयादानं वृ परा १०.२ ४८ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636