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दाल्भ्यस्मति
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से गमन करे उसके लिए मान्तपन एवं दो प्राजापत्य का विधान । सकाम चाण्डाली गमन करने वाले को चान्द्रायण और दो तप्तकृच्छ का प्रायश्चित करने का विधान
८६-६६ गोहत्या के लिए प्रायश्चित का विधान
६७-१०२ रोध, बन्धन, अतिवाह और अतिदोह का प्रायश्चित विधान १०३-१०८ वृषभ की हत्या का प्रायश्चित
१०६-११० गोदोहन का नियम दो महीने बछड़े को पिलावे व दो मास दो स्तनों का
दोहन करे तथा दो मास एक वक्त शेष समय में अपनी इच्छा हो वैसे करे।
द्वौमासौ पाययेद्वत्स द्वौ मासौ हौस्तनौ दुहेत् ।
द्वौमासौ चकवेलायां शेषं कालं यथेच्छया ॥११॥ किन-किन स्थानों में प्रायश्चित्त नहीं लगता इसका वर्णन ११२-११३ किन-किन को प्रायश्चित्त न करने का पाप लगता है
११४ अशौच का निर्णय वर्णन
११५-१२१ किसी हीन से सम्पर्क करने में दोष कहा है
१२२-१२३ सूतक और मृतक के आशौच का विधान
१२४-१२६ आशौचनिर्णयवर्णनम् : २६४३ बाल, शिशु एवं कुमार की परिभाषा
१३० विवाह, चौल और उपनयन में यदि गाता रजस्वला हो जाय तो शुद्धि के बाद मङ्गल कार्य करे
१३१-१३२ कोई कार्य प्रारम्भ हो और सूतक का आशौच हो जावे तो कार्य के सम्पादन का विधान
१३४ श्राद्ध कर्म उपस्थित होने पर निमन्त्रित ब्राह्मण आवें तो सूतक का आशौच नहीं लगता व उस कार्य में सम्पादन का विधान
देशान्तरपरिभाषावर्णनम् : २६४५ ब्राह्मणों के भोजन करते हुए यदि सूतक हो जाय तो दूसरे के घर से जल लाकर आचमन करा देने से शुद्धि हो जाती है
१३७ देशान्तर में यदि कोई सपिण्ड मर जाय तो सद्यः स्नान से शुद्धि कही गई है
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