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आङ्गिरसस्मृति
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करे
उच्छिष्ट, निर्माल्य, गङ्गामहिमा, महानदी, नदियों का रजस्वलात्व, पुण्यक्षेत्र
६१०-६४२ वमन
६४३-६४५ फिर श्राद्ध प्रकरण
६४६-६५० अनुमासिक में उच्छिष्ट वमन में व उच्छिष्ट के उच्छिष्ट स्पर्श में विचार
६५१-९५६ एक दूसरे के स्पर्श में
६६०-६६४ दर्शादि में छींक आने पर विचार
६६५-६७३ अपुत्र की सापिण्ड्यता
६७४-६७५ पति के साथ अनुगमन में पत्नी का एक साथ ही पिण्डदान
६७६-६७८ मत के ग्यारहवें दिन या दूसरे दिन सहगमन में श्राद्ध
९८३-६८८ यदि पत्नी ऋतुकाल में हो पति के मरण पर तो पति को तेल की कड़ाही में छोड़ दे और शुद्ध होने पर ही औवंदेहिक संस्कार
९८९-९६५ उसका पिण्ड संयोजन माता के सापिण्ड्य न होने का स्थल
९६७-६६८ दत्तपुत्र का पालक पिता का सापिण्ड्य होता है
६६६ दत्तपुत्र का औरसपिता के प्रति कृत्य
१०००-१००५ अन्य गोत्र दत्त का सपिण्डीकरण में विधान
१००६-१००८ कथा तृप्ति
१००६-२२ श्राद्ध के दिन दान जप न करे
१०२३-१०२७ दर्श में मृताह के श्राद्ध को पहले करे
१०२८ मताह के दिन मातामहादि का श्राद्ध हो तो मन्वादिक श्राद्ध करे
१०२६-१०३१ मताह में नित्यनैमित्तिक आ जायें तो नैमित्तिक पहले करे १०३२-१०३४ दर्श में बहुश्राद्ध हों तो दर्शादि को कर फिर कारुण्य श्राद्ध करे उसमें मत-मतान्तर
१०३५-१०४४ किन्हीं का कल्प प्रकार
१०४५-१०५६ भ्रष्टक्रिया का विधान, पतित की पच्चीस वर्ष के बाद क्रिया हो १०६०-१०७२
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