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आङ्गिरसस्मृति
भार्या पुरुष का पुत्र ग्रहण
३८३-३८८ उस समय की प्रतिज्ञा पूरी न करने से दोष
३८६-३६६ सपत्नियों में पुत्र के ग्रहण के समय जो रहे तो वह माता दूसरी सपत्नी माता
३६०-३६१ अन्य मातामहादि का स्थान
३६२-३९५ सपत्नी का पिता मातामह नहीं
३६६ पत्नी माता का तर्पण
३६६-३६८ प्रौपासनाग्नौ श्राद्धेऽप्रमादवर्णन : २६६१ सपत्नी माता का औपासन अग्नि में श्राद्ध
३६६ सपत्नी की अग्नि
४००-४०१ भाई के पुत्र के ग्रहण की विधि
४०२-४११ विभाग में भाई बराबर है
४१२-४१३ कामज पुत्रों का वर्णन
४१४-४३३ दत्तादि में विशेष
४३४-४४५ पत्नी की वैशिष्ट्यता
४४६-४४६ पुत्रों का ज्येष्ठ कानिष्ठय
४५० भोगिनी
४५१ भर्मणा, वा वातादि पत्नियों का वर्णन
४५६-४६४ धर्मपत्नी से उत्पन्न शिशु का ही स्पर्श मात्र कर्तव्य
४६५-४७१ सन्निधि भी स्पर्शमात्र कर्तृत्व
४७२-४७४ श्राद्धादि में अत्यन्त तृप्तिकर पदार्थ
४७५-४८१ गौरी दान वृषोत्सर्ग व पितरों को अत्यन्त तृप्ति कर कहे हैं ४८२-४८३ जकारपंचक का वर्णन
४८४-४८५ ग्रहण श्राद्ध का लक्षण
४८६-४६५ पनस स्थापित महान् विशेष है
४६६-५०३ अलर्कश्राद्ध
५०४-५०८ श्राद्धाहंदिव्यशाफवर्णन : ३००३ श्राद्ध के योग दिव्य शाक
५०६-५३० पनस की महिमा
५३१-५७१
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