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आङ्गिरसस्मृति
मन्त्र के अभाव में व्याहृतियों को काम में लिया जाय । व्याहृतियों
का महत्व वर्णन
जात कर्मादि संस्कारों का अतिक्रम होने पर प्रायश्चित
श्राद्धापकानन्तरमाशौचे निर्णय: : २६५१
श्राद्धपाक के बाद यदि आशौच हो जाय तो विधान । उस क्रिया के करने में ऋत्विकगण को वह बाधक नहीं हो सकता पाकारम्भ के बाद यदि आसपास में कोई मृत्यु हो तो श्राद्ध दूषित
नहीं होता
पाकारम्भ से पूर्व भी यदि कोई मृत्यु हो तो वह न करे
वशं पूर्णमास इष्टि पशुबन्ध के अनन्तर श्राद्ध
महादीक्षा में श्राद्ध
खर्वदीक्षा का श्राद्ध
दीक्षावृद्धि में श्राद्ध
दीक्षा के बीच में मृत्यु होने से नहीं होता
वैदिक कर्म का प्राबल्य
सूतिकाशौच अथवा मृतकाशौच में वैदिक कर्म न करे,
आवश्यक है
सतत आशौच होने पर श्राद्ध करने के लिए उस ग्राम को छोड़ दूसरे ग्राम में जाकर श्राद्ध करे
शिखा निर्णयवर्णनम् : २६५५
अस्पृश्यता
शत्रु के द्वारा छिन्न शिखा हो जाने पर गौ के पुच्छ के समान बाल रखकर प्राजापत्य व्रत कर संस्कार से शुद्धि कही गई है
मध्यच्छेद में भी वही बात है।
रोगादिसे नष्ट होने पर भी पूर्ववत् विधान है
७० वर्ष की अवस्था में शिखा न रहने पर आस-पास के बालों को शिखा के समान मान ले
पांच बार शत्रु से शिखाछेद होने पर ब्राह्मण्य नष्ट हो जाता है सूतकादि से श्राद्ध में विघ्न होने से स्त्री संभोग होने पर गर्भ रहे तो ब्रह्महत्या व्रत का विधान
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