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लोहितस्मृति
पुत्र संग्रहण की आवश्यकता
दोहित्र होने पर पुत्रग्रतिग्रह नहीं करना, क्योंकि दौहित्र होने से अजात पुत्र भी पुत्र ही है
किसी सम्मिलित परिवार में अविभक्त धन के भागीदार को मृत्यु हुई यदि उसके पुत्री है और पुत्र नहीं है तो दौहित्र ही पुत्र के समान सभी कार्यों को करने व कराने का अधिकारी है २२५-२२६ जो कुछ धन अपुत्रक का है उसका सारा दायित्व उस मृतक की
लड़की के पुत्र का है
परधनापहारकाणां दण्डविधानवर्णनम् : २७२३ जो व्यक्ति किसी भी प्रकार से दूसरे के द्रव्य को अपहरण करने की अनधिकार चेष्टा करे उसे कड़ा दण्ड दे और उसे अपने देश से बाहर निकलने का आदेश दे
जो व्यक्ति धर्म सङ्गत राज्य की प्रतिष्ठा में पूर्ण सहयोग दें उन्हें रक्षापूर्वक रखना चाहिए
पुत्रत्वस्याधिकारितावर्णनम् : २७२५
दौहित्र को पुत्रग्रहण की योग्यता
अपने इष्ट परिवार माता-पिता, श्रेष्ठ पुरुष आदि की आज्ञा से अपुत्रा विधवा स्त्री दत्तक ले
जो निकट सम्बन्धी दो या दो से अधिक सन्तान वाला हो उसका कोई सा भी पुत्र अपने लिए दत्तक लिया जा सकता है
यदि कोइ सा भी लूला, लङ्गड़ा, गूंगा, बहरा, अन्धा, काना, नपुंसक या कुष्ठ का दागी हो तो उसे लेना न लेना बराबर है यदि ऐसे विकलाङ्ग दत्तक लिये गए तो मन्त्र क्रिया आदि का लोप हो जाता है
यदि समाज के सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति एवं परिवार के भाई-बन्धु जिसके लिये आज्ञा दें तो वह दत्तक सफल होता है अपुत्रक का दत्तक लेना दौहित्र न उत्पन्न हो तब तक प्रामाणिक है बाद में यदि दौहित्र पैदा हो जाय तो वह अप्रामाणिक है । मनु ने दौहित्रों में बड़े छोटे में किसी एक को लेने का विधान बताया है
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