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ब्रह्मोक्तयाज्ञवल्क्य स्मृति २ नित्यनैमित्तिककर्म : २३४४ नित्यकर्म और पञ्चयज्ञों का विधान
पञ्चसना गृहस्थस्य वर्ततेऽहरहः सदा । कंडनी पेषणी चुल्ली जलकम्भी च माजनी॥ एतांश्च वाहयन्विप्रो बाधते व महर्मुहः । एतेषां पावनाय पञ्चयज्ञाः प्रकीर्तिताः ॥ अध्ययनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तुतर्पणम् ।
होमोदेवोलिभूतन्यशोऽतिथिपूजकः ॥ तिलक के भेद । यथा
5 वोमण्डलमध्यस्थं तिलकं करते द्विजः । तत्केवलं धनं कृत्वा लिंगभेवाः स उच्यते ।। वेणुपत्रदलाकारं वैष्णवं तिलकं स्मृतम् । अर्द्धचन्द्र तथा शैवं शाक्तेयन्तिर्यगच्यते ॥ ३१ ॥ चतुः कोणमितिस्पष्टं विकरालमुदाहृतम् ।
पंशाचं बिन्दुसंयुक्तं तिलक धर्मनाशनम् ॥ ३२ ॥ नैमित्तिक कर्म करने का प्रकार, प्राणायाम, कालिक सन्ध्याविधि
वर्णन, तर्पण, देवपूजाविधान, बलिवैश्वदेव, भोजनविधि, श्वकाकोच्छिष्ट भक्षण प्रायश्चित्त
१-२११ ३ नैमित्तिकवाद्धविधि : २३७५ नैमित्तिक श्राद्ध यथा पिता की मृत्यु की तिथि पर जो श्राद्ध किया __ जाय उसे एकोद्दिष्ट श्राद्ध कहते हैं । उनका वर्णन १.७६
४ श्राद्धवर्णन : २३६६ अमावस्या, संक्रान्ति, व्यतीपात, गजच्छाया, सूर्य और चन्द्रग्रहण में स्नान करने का विधान और महत्त्व बताया गया है
१-१६४ ५. श्राद्ध वर्णन आमश्राद्ध अर्थात सत्तू, गुड़, पिण्याक, दूध इन द्रव्यों से जो श्राद्ध किये जाते हैं उनका विधान
१-२६ ६. श्राद्ध वर्णन नान्दीमुख श्राद्ध जो विवाहादि शुभकर्मों पर किया जाता है उसका विधान और वर्णन
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