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वाधूलस्मृति
होम के लिए गो घृत श्रेष्ठ वह न न मिलने पर बकरी का घृत साक्षात् तैल का व्यवहार करे समय पर आहुति देने का माहात्म्य वेदाक्षरों को स्वार्थ में लाने वाले मनुष्य की निन्दा | छे प्रकार के वेदों को बेचनेवाले का वर्णन
मिले तो माहिष घृत उसके और उन सब के न मिलने पर
रविवार, शुक्रवार, मन्वाद्वि चारों युगों में और मध्याह्न के बाद तुलसी न लावे | संक्रान्ति, दोनों पक्षों के अन्त में द्वादशी में और रात्रि तथा दिन की सन्ध्या में तुलसी-चयन निषेध है तीर्थ में मन, वाणी और कर्म से कैसा भी पाप न करे और दान न ले क्योंकि वह सब दुर्जर है अतः अक्षम्य है । ऋत ( व्यवहार) अमृत सत्य कर्तव्य पालन ऋत या प्रमृत से और सत्यअन्त से जीविका कमावे
किसी वस्तु को बिना पूछे लेने से पाप
मनु जो ने वनस्पति, कन्द, मूल फल, अग्निहोत्र के लिए काठ, तृण और गौओं के लिए घास ये अस्तेय बताए हैं। किन-किन लोगों से किसी भी रूप में कोई वस्तु न लेवें इसका वर्णन दूसरे के लिए तिल का हवन करने वाले दूसरे के लिए मन्त्र जप करने वाले और अपने माता पिता की सेवा न करने वाले को देखते ही आंख बन्द कर ले
जो लोग निन्द्य कर्म करते हैं उनके सङ्ग से सत्पुरुष भी हीन हो जाते हैं और उनकी शुद्धि आवश्यक है
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जो आदेश तीन या चार वेद के महा विद्वान् दें वही धर्म है और कोई हजारों व्यक्ति चाहे, कहें वह धर्म सम्मत नहीं । वेदपाठी सदा पञ्चमहायज्ञ करने वाले और अपनी इन्द्रियों को वश में करने वाले मनुष्य तीन लोकों को तार देते हैं पतित लोगों से सम्पर्क करने से मनुष्य एक वर्ष में पतित हो जाता है
कलियुग में सभी ब्रह्म का प्रतिपादन करेंगे परन्तु कोई भी वेद विहित कर्मों का अनुष्ठान नहीं करेगा
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