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बौधायन स्मृति अघमर्षणकल्पव्याख्यान : १८५२ तीर्थ में जाकर सूर्याभिमुख होकर अघमर्षण सूक्त प्रातः, माध्याह्न
और सायं तीन काल में एक सौ बार पाठ करने से ज्ञाताज्ञात उपपातकों से शुद्ध हो जाता है आत्मकृतदुरितोपशमायप्रसृतयावकस्यहवन
विधिवर्णनम् : १८५३ दुरित क्षयार्थ एक प्रस्थ यव के हवन का विधान
१-२१ कूष्माण्डहोमविधि : १८५५ कूष्माण्डी ऋचा "यद्देवा देव हेऽनं" इत्यादि तीन मन्त्रों से हवन करने से ब्रह्मचारी के स्वप्नदोष आदि प्रायश्चित का विधान है १-२२
चान्द्रायणकल्पभिधान : १८५६ चान्द्रायण कल्प का विधान बताया है
अनश्नत्परायणविधिव्याख्यानम् : १८५६ निराहार व्रत या फलहार ब्रत कर जो मन्त्र इसमें लिखे हैं उनसे हवन करने से चक्षु का प्रकाश बढ़ेगा
१-२१ याप्यकर्मणोपेतस्थनिष्क्रयार्थ जपाविनिरूपणं : १८६१ अयाज्य याजन जिसका दान नहीं लेना उसका दान लेना इत्यादि कर्मों का प्रायश्चित्त, जप आदि का निरूपण
चक्षःश्रोत्रत्वग्वाणमनोव्यतिक्रमादिषप्रायश्चित्त तथा
विवाहात्प्राककन्यायारजोदर्शनेदोषविरूपणम : १८६३ प्रकीर्ण प्रायश्चित्तों का वर्णन है, यथा जिस अंग से जो पाप किया
गया उनका पृथक् पृथक् प्रायश्चित्त तथा संकीर्ण पापों का - प्रायश्चित्त
१-३२ प्रायश्चित्तविधि : १८६७ प्रायश्चित्त की विधि बताई है
प्रायश्चित्तविधि : १८६६ छोटे-छोटे पापों का प्रायश्चित्त एवं विधि । अघमर्षण सूक्त तथा - कूष्माण्डी मन्त्रों का प्रायश्चित्त
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