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वसिष्ठ स्मृति
वशिष्ठ स्मृति
१. धर्मजिज्ञासाधर्माचरणस्यफलधर्म लक्षणं : १४६८
धर्म का लक्षण, आर्यावर्त की सीमा, देश धर्म, कुल धर्म का वर्णन । महापाप पाप तथा उपपातकों का वर्णन । ब्राह्म, दैव, आर्ष और प्राजापत्य विवाह का वर्णन | सब वर्णों को ब्राह्मण से उपदेश ग्रहण करने की विधि
२. ब्राह्मणादीनां प्रधानकर्माणि कृषिधर्म निरूपण: १४७१ द्विजत्व की परिभाषा तथा आचार्य की श्रेष्ठता बताई है । ब्राह्मण के षट् कर्म का निरूपण, गुरु की आज्ञा पालन, प्रत्येक वर्ष की अपनी-अपनी वृत्ति का वर्णन । धन अन्नादि की वृद्धि की सीमा और धन वृद्धि पर ब्राह्मण, क्षत्रिय को निषेध बताया है ३. अश्रोत्रियादीनां शूद्रसधर्मस्वमाततायिवध वर्णन : १४७५ ब्राह्मण को वेद पढ़ना आवश्यक । बिना वेद विद्या के अन्य शास्त्रों का पढ़नेवाला ब्राह्मण शूद्र कहलाता है । धर्माधर्म निर्णेता वेदज्ञ हो । वेदज्ञ को ही दान देना । आततायी के लक्षण । आचमन कब-कब करना चाहिए। भूमि में गड़े हुए धन के सम्बन्ध में भूमि शोधन एवं पात्र शोधन का वर्णन
४. मधुपर्कादिषु - पशुहिंसनवर्णनम् : १४८० ब्राह्मणादि वर्ण जिस प्रकार वेदों में बताये हैं उनका विशदीकरण । मधुपर्क का विधान, अशौच क्रिया के नियम, अशौच काल का वर्णन
५. आत्रेयी धर्म वणनम् : १४८२ प्रथम स्त्री का कर्तव्य वह अपनी शक्ति का ह्रास न होने दे एवं स्वतन्त्र न रहे, पिता, पति तथा पुत्रों की देख-रेख में रहे । रजस्वला काल में रहन-सहन तथा इन्द्र ने पाप देने के अनन्तर स्त्रियों को जो वरदान दिया उसका दिग्दर्शन ।
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