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वसिष्ठ स्मृति
१५. दत्तकप्रकरण १५०६
दत्तक पुत्र के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। १६. व्यवहारविधि १५०८ राजा मन्त्री की संसद् का वर्णन, साक्षी के लक्षण, का दण्ड तथा असत्य कहने पर पाप बताया है । १७. पुत्रिणां प्रशंसावर्णनम् १५१०
पुत्र के होने से पिता पितृऋण से छुटकारा पा जाता है । पुत्रवान् को स्वर्गादि लोक प्राप्ति, क्षेत्रज पुत्र गर्भाधान किया है
उसका पुत्र है जिसने
असत्य साक्षी
एक पिता के कई पुत्र हों उनमें यदि एक भाई के भी पुत्र हैं तो सब भाई पुत्रवाले माने जाते हैं इसी प्रकार किसी के तीन चार स्त्री हो उनमें यदि एक स्त्री के भी सन्तान हो जाय तो सब पुत्रवती मानी जाती है । दायाद अदायाद सन्तति का वर्णन । स्वयमुपागत पुत्र के सम्बन्ध में हरिश्चन्द्र अजीगर्त का इतिहास तथा शुनशेप के यूपबन्धन का इतिहास जैसे वह विश्वामित्र का पुत्र हुआ । दाय विभाग का वर्णन, दायाद ६ पुत्र एवं अदायाद ६ पुत्रों का वर्णन
१८. चाण्डालादिजात्यन्तरनिरूपणम् । १५१६ चाण्डालादि जाति प्रतिलोम से बताई है, जैसे- ब्राह्मणी माता शूद्र पिता से जो सन्तान हो वह चाण्डाल होती है । इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक मनुष्य अपनी जाति में विवाह करे उससे जो सन्तान होगी वह धार्मिक तथा मनुष्यता के व्यवहारवाली होगी यह बताया गया है
१६. राजधर्माभिधान वर्णनम् १५१७ राजा को सब वर्ग के धर्म की रक्षा करनी चाहिए अपराधियों को बिना दण्ड दिये छोड़ने से राजा को पापी कहा है २०. प्रायश्चित्तप्रकरणवर्णनम् १४२० विभिन्न प्रकार के प्रायश्चित्त भ्रूणहत्या और ब्रह्मघ्न के प्रायश्चित्त का वर्णन
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