________________
याज्ञवल्क्य स्मृति
गृहस्थी को अतिथि सत्कार सबसे बड़ा यज्ञ बताया है आचरण, सभ्यता और ब्राह्मण क्षत्रिय आदि जातियों के कर्म अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रहः ।
दानं वया दमः शान्ति सर्वेषां धर्मसाधनम् ॥
किसी की हिंसा न करना, सत्य कहना, किसी का द्रव्य न चुराना,
पवित्र रहना, अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना, दान देना, सब जीवों पर दया करना, मन को दमन करना, क्षमा करना ये मनुष्य मात्र के धर्म हैं
यज्ञ करने का विधान
स्नातकधर्मप्रकरणवर्णनम् : १२४७
ब्रह्मचारी और गृहस्थी के विशेष धर्म
गृहस्थियों को जिन मनुष्यों से मिलजुल कर रहना चाहिये
सदाचार और जिनका अन्न नहीं खाना चाहिए उनका निर्देश
भक्ष्याभक्ष्य प्रकरणवर्णनम् : १२५०
निषिद्ध भोजन की गणना
मांस के सम्बन्ध में विचार और मांस न खाने का माहात्म्य द्रव्यशुद्धिप्रकरणवर्णनम् : १२५२
यज्ञ पात्रादि की शुद्धि किस चीज से किसकी शुद्धि होती है शुद्धि का वर्णन, जल स्थान पक्के मकान की शुद्धि आदि दानप्रकरणवर्णनम् : १२५३
ब्रह्मचारी के नित्य नैमित्तिक कर्मों का वर्णन
१३१-१४२
उपाकर्क और उत्सर्ग का समय विधान तथा ३७ अनध्याय के काल १४३-१५१
१५२-१५५
१५६-१६८
१५६-१६५
Jain Education International
"
८१
१०८-११४
११५.१२१
For Private & Personal Use Only
१२२ १२३-१३०
ब्राह्मण की प्रशंसा और पात्र का लक्षण
गौ, पृथिवी, हिरण्य आदि का दान । अपात्र को देने में दोष गोदान का फल, गोदान की विधि और गोदान का माहात्म्य पृथिवी, दीपक, सवारी धान्य, पादुका, छत्र और धूप आदि दान का माहात्म्य । जो ब्राह्मण दान लेने में समर्थ है वह न लेवे तो उसे बड़ा पुण्य होता है कुशा, शाक, दूध, दही और पुष्प यह कोई अपने को अर्पण करे तो वापस नहीं करना चाहिए
१६६-१७६
१७७-१८१
१८२-१८६ १८७-१६८
१६६-२००
२०१-२०२ २०३ २०८
२०६-२१२
२१३-२१४
www.jainelibrary.org