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सिरिवालचरिउ
वर्णनात्मक स्थल
वर्णनात्मक स्थलोंका सुन्दर चित्रण है। कहीं-कहीं दृश्य 'व्यक्ति' या 'वस्तु'का 'शब्दचित्र' उसका प्रत्यक्षीकरण कर देता है। ऐसे प्रसंगोंमें हैं अवन्ती, मालव, उज्जैन, रत्नद्वीप, हंसद्वीप, कोंकणद्वीप, सहस्रकूट जिनमन्दिर, राजा कनककेतु, उसका परिवार, कोढ़ी श्रीपाल, धनपालकी आत्मग्लानि तथा युद्धका वर्णन ।
अवन्ती
"इस भरत क्षेत्रमें अवन्ती नामक सुन्दर देश है, जहाँ राजा सत्यधर्मका पालन करता है । जहाँ गाँव नगरोंके समान हैं और नगर भी देवविमानोंको लज्जित करते हैं। जिसमें नगरोंके समूह और पुर, शोभासे सुन्दर हैं और जो द्रोणमुख, कव्वडे और खेड़ों से बसा हुआ है । जिसमें सरि, सर और तालाब कमलिनियोंसे ढके हुए हैं। हंसोंके जोड़े हंसिनियोंके साथ शोभा पाते हैं। जिसमें गायों और भैंसोंके झुण्ड एक कतारमें मिलकर उत्तम धान्य ( कलम शालि ) इच्छा भर खाते हैं। जिसमें नील कमलोंसे सुवासित पानी बहता है, जिसका गम्भीर जल धीवरोंके लिए वर्जित है। जहाँ पथिक छह प्रकारका भोजन करते हैं और कोई दाख
और मिरच ( काली ) चखते हैं। सभी लोग ईखका रस लेकर पीते हैं और प्याऊसे पानी पीते हैं। अवन्ती देशमें मालव जनपद है जो तरह-तरहसे शोभित और कई देशोंसे घिरा हुआ है। जिसकी स्त्रियाँ मसीली और अत्यन्त सुकुमार हैं। उनके हाथ मानो मालती कुसुमोंकी मालाएँ हों। जो भूमण्डलके मण्डलमें अग्रणी हैं, जिसका राजा जयश्रीके मण्डलमें सबसे आगे है । जहाँ गृहमण्डलको कोई ग्रहण नहीं करता, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति निडर है और वह शत्रुमण्डलसे नहीं डरता। जहाँ विद्वान् पुरुष बहुत-सी भाषाएँ पढ़ते हैं और जिसमें श्री-सम्पन्न वैश्य निवास करते हैं। जिस प्रकार गाय अपने चारों थनोंसे सन्तानका पोषण करती है, उसी प्रकार राजा भी धन-कण ( अन्न )से प्रजाका पोषण करते हैं। जिसे अकीर्ति कभी नहीं छ सकती और जिसे छूने के लिए अमरावतो आतो है ।" ( ११३,४ ) उज्जैनी
"उसमें उज्जैनी नामकी नगरी अत्यन्त प्रसिद्ध है, जो, सोना और करोड़ों रत्नोंसे जड़ी हुई है और ऐसी जान पड़ती है मानो अमरावती ही आ पड़ी है। यद्यपि उसे देवता शक्ति-भर थामे हुए थे । वह अनोखी नगरी उपवनोंसे शोभित है। पक्षियोंके बच्चे उसमें चहचहा रहे हैं। लतागृहोंमें किन्नर रमण करते हैं। साल-वृक्षोंपर कोयले कूक रही हैं। कमलोंसे ढंकी हुई जलपरिखाएँ शोभित हैं। तीन परकोटोंसे घिरी हुई वह नगरी यद्यपि पंचरंगी है, फिर उसके भीतर है बाजारका मार्ग, मानो वह रत्नोंसे निर्मित मोक्षका मार्ग हो। हाथी शुद्ध स्फटिक मणियोंसे निर्मित दीवालोंमें अपना प्रतिबिम्ब देखकर उसमें छेद करने लगते हैं। उसमें नौ, सात और पाँच भूमियोंवाले घर हैं, जिनपर बँधे हए बन्दनवार शोभित हैं। जहाँ लोग छत्तीस प्रकारके भोगोंको भोगते हैं । सभी लोगोंकी जिनधर्म में आसक्ति है।” ( १।४,५ ) हंसद्वीप
"हंस द्वीपके विषयमें कविका कहना है कि द्वीपमें विधाताने शुद्ध स्फटिक मणिके समान कोमल, अट्ठारह खानें बनायी हैं । सार, टार, गय, कणय आदि खदानें जिसमें प्रधान खदानें थीं। लाट, पाट, जिवादि, कस्तूरी, कुंकुम, हरिचन्दन और कपूर जिसमें हैं। जिसमें ऊँचे धवलगृह और जिनमन्दिर थे। हंसद्वीपमें प्रचुर धन गरजते हैं। दसलक्षण धर्म भी (ज्ञान विचक्षण ) सभी वणिक् स्वीकार करते हैं। जिसके बाजारोंमें मणि और रत्न भरे हुए थे। समुद्र की तरंगसे चंचल तटोंवाला है। उसमें जैनोंकी वैश्याटवी (बाजार) शोभित थी। स्त्रियाँ जहाँ नियमसे निकलती थीं। परमेश्वरके समान जिसमें मेष गरजते थे। जिसमें परस्त्रीको देखना दण्डित समझा जाता था। लोग परस्त्री देखना सहन नहीं करते थे। जहाँ मधुर ( मीठा)
१. वह नगर, जिसे स्थल और जलमार्ग जोड़ते हैं। २. खराब नगर । ३. छोटा गाँव ।
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