Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 114
________________ दूसरी सन्धि हे भव्यजनो, अब मैं कहता हूँ कि श्रीपालका गंजन किस प्रकार हुआ। सेठकी दुष्ट प्रवंचना कथा भी सुनिए। राजाने अपने दामादसे कहा कि तुम जो माँगोगे वह मैं तुम्हें निश्चयसे दूंगा। ( उसने कहा )-'हे देव, मैं कुछ नहीं माँगूंगा। संक्षेपमें अपनी बात कहता हूँ कि मैं दस-पाँच दिन आपके पास हूँ।" इस प्रकार श्रीपाल स्वच्छन्दतापूर्वक राज्य करने लगा। गुणमाला पत्नीके साथ सुखसे रहता था। इसी बीच कथा वहाँ पहुँचती है जहाँ कि महासती रत्नमंजूषा थी। सत्य और शीलकी अपनी प्रतिज्ञापर आरूढ़ वह मानो साक्षात् परमेश्वरी शासन देवी हो। ( उसने कहा )-"यदि मैं अपने पतिको छोड़कर किसी दूसरेके प्रति मुग्ध होऊँ, तो मैं देव, शास्त्र और गुरुके प्रति विद्रोही बनूँ।" धवलसेठ वहाँसे कूच करता है और कथाका संयोग दलवट्टण नगर आ जाता है। वह पापी भी इसी द्वीपमें आ पहँचता है और मिलनेके लिए राजाके पास जाता है। नये-नये मोती लेकर और प्रणामकर धवलसेठने राजासे भेंट की। राजाने पूछा-"इनमें कोई कोशाम्बीका है ?" सेठने उत्तर दिया-"मैं हूँ, आपका साधर्मी जन ।" राजा तब कहता है"इन्हें ( उपहारोंको ) श्रीपालके लिए सौंप दो। श्रीपाल ! इसे पानका बीड़ा दो।" उसने कपूर, पान और ( सुपाडिय ) सुपाड़ी स्वर्णपात्रमें रखकर सेठके पास रख दी। उस पापीने जैसे ही श्रीपालको देखा, वैसे ही मानो उसके सिर पर वज्र गिर गया। फिर जब उसने अपनी दृष्टि स्थिर करके सोचा तो उसे जैसे सन्निपात की लहर मार गयी। हृदयमें जलते हुए सेठने पूछा-"यह कौन है और कहाँसे आया है ?' तब किसीने कहा-यह राजाका दामाद है। श्रीपाल, जो समुद्र तैरकर आया है। घत्ता-तब सेठ वहाँसे चला और अपने डेरेमें आया। बैठकर मन्त्रियोंसे विचार-विमर्श करने लगा। उसने कहा-'मेरा क्षयकाल श्रीपाल तो यहाँ है। वह यहाँ की राजकुमारीसे विवाह करके रह रहा है" ॥१॥ उस मूर्ख ( सेठ ) ने सब प्रकार कूट मन्त्रणा की और उसने डोम, चाण्डाल आदिको बुलवाया । उनसे कहा-"तुम नृत्य करो, राजाके दरबारमें जाकर छल करो। तुम कहना कि श्रीपाल मेरा पुत्र है। मैं तुम्हें निश्चय ही एक लाख रुपया दूंगा।" यह सुनकर वे राजाधिराजके पास पहुँचे । भीतर जाकर उन्होंने प्रतिहारियोंसे पूछा। डोमोंने भीतर जाकर राजसभा देखी मानो साक्षात् गन्धर्वसभा ही बैठी हो। उन्होंने नवरसका प्रेक्षण प्रारम्भ किया। हास्य और छलसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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