Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 121
________________ सिरिवालचरिउ [२.९.१ वस्तुबंध-जो णच्चेसइ पडह वारण सउ-हाव-भाव संजुत्तउ । सो परणेसइ सयल ते रायकुमरि सउ-कण्ण-जुत्तउ ।। जासु पटह-वाएण पुणु उच्छहिँ णडहिँ विचित्त । सिरिवाल-सामी णिसुणि तसु केरउ ते सुकलत्तु ।। आयण्णिवि सेट्ठिहि वयणगइ तहिँ गउ सिरिवालु वि अमलमइ । तहि दिट्ठी सुंदरि ससिवयणी गल कंदलि लोलइ हार-मणी । ता भणइ कुमरु णाडउ णडहि घायर मुयंगु तुहुँ णच्चिसहि । ता धरिउ तालु चचपुटु मुयंगु सा चित्तलेह णच्चिय सुरंगु । जयमंगल-तूर. वज्जियाइँ कण्णडियइँ सरसई णच्चियाई । एक्केण सहिउ सउ परणियाउ ससुरें सिरिवालु समण्णियाउ । रहवर-यवर-गयवर-घणाई करहई दिण्णई कर-कंकणाई । ता मयरकेउ रंजिउ मणेण संतोसिउ जणु कुंडलपुरेण । जा अच्छइ सुहेण जामायउ ता तहिं एकु पुरिसु संपायउ । घत्ता-सो भणइ णवेप्पिणु पय पणवेप्पिणु विण्णत्ती अवधारि पहु । इह अत्थि पसिद्धउ वहुगुण-रिद्धउ कंचणपुरु णामेण तहु ॥९।। ५ तहिं वज्जसेणु णामें णरिंदु । विहवेण पराजिउ जेण इंदु । तहो कंचणमाला पिय-घरिणी जहि रूवें जित्तिय सुर-रमणी । सुय चारि देव पढमउ सुसीलु गंधव्वु जसोहु विवेय-सीलु । तहो कण्णा णाम विलासमइ णिय-गमण-विजित्तिय-हंसगइ । वस्तुबंध-राउ' सुंदरि अस्थि णउसयई सविलास सविज्जमइँ परिणि देव रइ-सुक्खु माणहि । कंतइँ कुसलइँ कुच्छरइँ सुरय-रंगु ते बहु विजाणहि ।। सव्वहँ जेट विलासमइ तुव विरहे संतत्त । चल्लहि कुँवरि-पसाउ करि परणहि सयल कलत्त ।। ता भणइ दूउ रइ-रमण-हारि जो चित्तलेह परिणइ कुमारि । तहो णव सय पुणु वि णिमित्तिएण इय कहियउ आयम-जुत्तिएण | तं सुणिवि कुमरु संचालियउ गउ णयरहो दिट्ठउ बालियउ । ता परिणिय कण्ण विलासमइ णव-सयइँ ताहँ पुणु सुद्धसई। राएं सिरिवालु संमाणियउ पुण्णाहिउ इहु संदाणियउ । दिण्णई भंडारई मणहराई पुणु दिण्ण तुरंगम-साहणाई। कयवइ दिवसा तहिँ करिवि रज्जु पुणु करइ वीरु पत्थाण-कज्जु । एक्को जि सहसु एक्को ण अहिउ चालिउ अंतेउरु सयल-सहिउ । घत्ता-पुणु सहु कण्णडियहि, गय-घड-गुडियहिँ, चलिउ वीरु दलवट्टणु । वहु-समउ गरिंदहि, कुवलय-चंदहि, सिरिवालु वि अरि-दलवट्टणु ॥१०॥ ९. १. ख क-ण जसइ । २. ग अच्छइ सुहिण कुमारु जाम ता एकु पुरिसु संचंतु ताम । १०. १. ग राय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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