Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 147
________________ सिरिवालचरिउ [२.३५. ५पुह विवालु भूवालु सुसारहि तुरिउ अचंभउ पुणु वि महारहि । ए जाए सुंदरि वरबाला सत्त मॅजूस पंच गुणमाला। एवमाइ सह-पुत्त समाणिय णा तहि वाझण-दूहव राणिय । सहस-अट्ठ अंतेउरु गणियउ णं सुर-रमणिउ पुण्ण जणियउ। एवमाइ बहु-परियण-जुत्तउ करइ रजु सिरिवालु सइत्तउ । धम्म अत्थु कामु वि बहु सारई एयहु उतरि ण सुहु संसारई । बाल-जुवाण-बुड्ड-सुहु भुत्तउ | चउथी पयडी मोक्खु णिरुत्तउ । सिद्ध-चक्क-फल-पुण्ण-पहाइय मण-वंछियई भोय संपाइय । घत्ता-इय रज्जु करतउ पुणु वि विरत्तउ देवि सयलु णिय-पुत्तउ । संसारहो संकिउ पुणु दिक्खंकिउ मंति-पुरोहिय-जुत्तउ ।।३५।। पुहवीवालहो रज्जु समप्पिउ अप्पउ राय-महत्वई थप्पिउ । मयणा सुंदरि-पमुह अंतेउर हार-डोर उत्तारिय णेउर। सयल वि संजइयउ संजायउ दुविहें तवयरणेहि विराइउ । महा-सुक्क सुरइंदु हवेप्पिणु गइय देवि तिय-लिंगु हणेप्पिणु । अंगरक्ख जहि जहि वउ भाविउ तहि तहि देवत्तण-सुहु पाविउ । सयल वि णर-णरवड खम देविण घोरु वीरु तवयरण करेविण । गउ सिरिवालु परम-णिव्वाणहो। सिद्ध-चक्क-फलु भवियहो जाणहो। अवरु वि णर-णारी जु करेसइ एवमाइ सो फल पावेसइ । सग्ग'सुराहिवासु मुंजेसइ सुर-कण्णहिं सिउ कील करेसइ । कत्तिय-साढहि फागुण मासहि ते गंदीसुर-दीउ गवेसहि । वह भत्तिहिं जिण पूज करेसहि सिद्ध-चक्क-फलु पुण भुंजेसहि । जिणई अकित्तिमाई वंदेसहि। पुणु महियलि चक्कवइ हवेसहि । करिवि रज्जु पुणु मोक्खु लहेसहि धत्ता-सिद्ध-चक्क-विहि रइय मई णरसेणु भणइ णिय-सत्तिए । भवियण-जण-आणंदयरु करिवि जिणेसर-भत्तिए ।।३६।। इय सिद्ध-चक्क-कहाए, महाराय-चंपाहिपे-सिरिवालदेव-मयणा-सुदरि-देविचरिए, पंडित-सिरि-णरदेव-विरइए। इहलोक-परलोक-सुह-फल-कराए, रोर-दुह-घोर-कोढ-वाहि-भवाणाण-णासणाए। सिरिवाल-णिव्वाण-गमणोमयणासुंदरि अवर-सयल अंतेउर-अंगरक्ख-देवत्तणो णाम वीओ परिच्छेओ समत्तो। ३५. १. ग. वंझण । २. ग. जणियउ । ३. ग. "धम्म अत्थु कामु वि वहु सहिउ एयहउ वहहु जइ अहियउ"। ३६. १. ग. सेग्गि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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